गीतिका/ग़ज़ल

वक्त लगता है…

फैसला कर ज़रा करने में वक्त लगता है।
कश्ती पानी में उतरने में वक्त लगता है।।

ज़ख्म इतने लिए महफ़िल में कैसे जाउंगी,
आईना दे दो सँवरने में वक्त लगता है।

हिजाब होता तो पल में ही ये सरक जाता,
नकाब ठहरा उतरने में वक्त लगता है।

जो चाहो करना मुक्कमल तो जगा लो इनको,
ख्वाबों की नींद उतरने में वक्त लगता है।

यूँ तो पुरजोर है कोशिश तुझसा बनने को मगर,
आँख की शर्म को मरने में वक्त लगता है।

गूंज शहनाई की पल में हुई मातम लेकिन,
रंग मेहँदी का उतरने में वक्त लगता है।

कभी कातिल कभी हसीन जैसा भी है ‘लहर’,
वक्त गुजरेगा गुजरने में वक्त लगता है।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा