कहानी

कदमों के निशां

गाँँव हमीरपुर में आज उत्सव का माहौल है। सबके चेहरे पर खुशी का उन्माद छाया हुआ है। जिसे देखो वही, बच्चे, बूढ़े, जवान सभी दौड़ दौड़ के गाँँव के अस्पताल की ओर जा रहे हैं और जाकर अस्पताल के सामने के मैदान में जमा हो रहे हैं। सबकी आंखों में बेचैनी स्पष्ट झलक रही है। सब को देख कर ऐसा लग रहा है जैसे आसमान से कोई परी उतर आई है और उसकी एक झलक पाने के लिए सब बेचैन है। हाँ.. सचमुच, परी ही तो है वो। कई साल पहले गांव में यह अस्पताल बना है परंतु आज तक कोई लेडी डॉक्टर इस अस्पताल में पदस्थ नहीं हुई। आज पहली बार डॉक्टर उर्वशी इस अस्पताल में पदस्थ हुईं हैं। हाँ..सचमुच की ही उर्वशी है वो। गोरा रंग और तीखे नैन नक्श वाली बहुत खूबसूरत लड़की। सब आपस में कानाफूसी कर रहे हैं “इतनी खूबसूरत और नाजुक लड़की इस गाँँव के अस्पताल में कैसे आ गई? कोई मर्द डॉक्टर भी तो इस गाँँव में नहीं आना चाहता है, पर..इसने अपनी स्वीकृति कैसे दे दी?”

जंगलों के बीच बसा हुआ एक छोटा सा गाँँव हमीरपुर। कुछ वर्ष पहले तक शहर के साथ इस गाँव का कोई संपर्क नहीं था। ना पक्की सड़कें थी और ना ही कोई बस गाँँव तक आती थी। इस क्षेत्र का एक पढ़ा लिखा नौजवान निखिलेश, जब से विधायक बना है तब से गाँव का सरपंच और विधायक ने मिलकर कई गाँवों में अस्पताल और हायर सेकेंडरी तक स्कूल खोल दिये हैं। अस्पताल तो बन गये परंतु बात वहीं आकर रुक गई कि गाँव के अस्पताल में कोई डॉक्टर आना ही नहीं चाहता है। विधायक निखिलेश ने बहुत से डॉक्टर से मिलकर गाँव की समस्याओं के बारे में बात की परंतु कोई तैयार नहीं हुआ। अंत में जब डॉक्टर उर्वशी से बात हुई तो वह गाँव में पदस्थ होने के लिए सहर्ष तैयार हुई क्योंकि उसके मन में भी गरीबों की सेवा की भावना पल रही थी!

जब से विधायक की गाड़ी और डॉक्टर उर्वशी की गाड़ी आकर अस्पताल के सामने रुकी, तब से लोग जमघट लगा कर वहीं पर डंटे हुए हैं, डॉक्टर उर्वशी का एक झलक पाने के लिए। सरपंच और विधायक डॉक्टर उर्वशी को अपना कार्यभार सौंपने के पश्चात बाहर निकल आए और भीड़ की ओर मुखातिब होकर कहा “देवियों, सज्जनों, भाइयों, बहनों आप लोगों की उपस्थिति देखकर मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। आप लोगों में जो आनंद की लहर मैं देख रहा हूं उससे मैं काफी उत्साहित हूं।”
भीड़ में से किसी की आवाज आई “विधायक जी! हम डॉक्टर साहिबा को देखने आए हैं और उनकी बात सुनने आए हैं। उनसे कहिए कि वह हमसे बातें करें।” पूरी भीड़ चिल्ला उठी “हां.. हां.. हम डॉक्टर साहिबा को देखने आए हैं और उनकी बातें सुनने आए हैं।”
भीड़ की शोर को शांत करने के लिए डॉक्टर उर्वशी मुखातिब हुई “देवियों और सज्जनों शांत हो जाइए.. शांत हो जाइए.. मैं आपके सामने ही खड़ी हूं और आपसे बात कर रही हूं।”
पूरी भीड़ चिल्ला उठी “नमस्ते डॉक्टर साहिबा! आपके आने से हम लोग बहुत खुश है। अब हमारे गाँव में कोई बिना इलाज के नहीं मरेगा।”
“नमस्ते! आप लोगों का प्यार पाकर मैं अभीभूत हूं। अब मैं आ गई हूं आप लोगों की सेवा के लिए। मुझे अपनी सेवा का मौका अवश्य दीजिएगा। जब कोई भी परेशानी हो तो बेझिझक मेरे पास चले आइए, ठीक है।” डॉक्टर उर्वशी ने भीड़ को समझाते हुए कहा।

गाँव की जवान होती कोई ना कोई लड़की रोज उर्वशी के पास माहवारी की परेशानी को लेकर आती है। डॉक्टर उर्वशी सबको सैनिटरी नैपकिन देती है और कहती है “गंदे कपड़े का इस्तेमाल मत किया करो। उससे बीमारी होने का डर रहता है। सेनेटरी नैपकिन दे रही हूं इसका इस्तेमाल करना और जब खत्म हो जाए तो मुझसे आकर ले जाना।”
एक दिन डॉक्टर उर्वशी ने एक लड़की से पूछ लिया “रत्ना, क्या आप स्कूल नहीं जाती हो? कितनी उम्र है आपकी और कौन सी क्लास तक पढ़ी हो?”
“नहीं जाती हूं डॉक्टर साहिबा। मैं छठवीं तक पढ़ी हूं, उसके बाद स्कूल जाना बंद कर दिया।”
“क्यों स्कूल जाना बंद कर दिया?”
“जब से माहवारी शुरू हुई है तब से स्कूल जाना बंद कर दिया।”
“क्यों?”
“क्या है ना कि डॉक्टर साहिबा, स्कूल में टॉयलेट नहीं है। माहवारी शुरू हुआ तो स्कूल जाकर बहुत परेशानी होती है इसलिए गाँव की सभी लड़कियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया। स्कूल में लड़के तथा लड़कियाँ सभी एक साथ मिलकर पढ़ते हैं इसलिए बिना टॉयलेट के बड़ी परेशानी होती है। पांचवी, छठवीं तक सब लोग जाते हैं उसके बाद बंद कर देते हैं।” शर्माते शर्माते रत्ना ने डॉक्टर उर्वशी को बताया।

रत्ना की बात सुनकर डॉक्टर उर्वशी चिंता में पड़ गई “गाँव में स्कूल है हायर सेकेंडरी तक परंतु टॉयलेट नहीं है। गाँव की लड़कियाँ पढ़ लिखकर आगे कैसे बढ़ेंगी? जब तक लड़कियाँ शिक्षित नहीं होंगी तब तक वे रूढ़ीवादी समाज में हो रहे लड़कियों तथा नारियों के प्रति अन्याय का सामना कैसे करेंगी? एक उन्नत तथा शिक्षित समाज के निर्माण में स्त्रियों का शिक्षित होना तथा भागीदार होना अति आवश्यक है। जब तक गाँव की उन्नति नहीं होगी तो हमारे देश की उन्नति भी अधूरी रह जाएगी। अब समय आ गया है गाँव की एक एक लड़की को शिक्षित होने का तथा अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने का।”
गाँव का सरपंच नितिन युवा एवं पढ़ा लिखा है। वह अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान एवं ईमानदार है। एक दिन डॉक्टर उर्वशी सरपंच से मिली और उनसे कहा “मिस्टर नितिन! मैं गाँव के स्कूल देखना चाहती हूं! क्या आप मुझे ले चलेंगे?”
“क्यों नहीं डॉक्टर साहिबा! यह तो बहुत अच्छी बात है। आप कहे तो अभी ले चलते हैं आपको।”

डॉक्टर उर्वशी ने कई गाँवों के स्कूल घूम कर देखा। इमारत तो काफी हद तक ठीक है। कक्षाएं भी अच्छी बनी है परंतु टॉयलेट की व्यवस्था बिल्कुल सही नहीं है। गाँव के सारे स्कूलों में लड़के, लड़कियाँ एक साथ मिलकर पढ़ते हैं अर्थात को एजुकेशन सिस्टम है। लड़कियों के लिए अलग से कोई टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। टॉयलेट बना भी है तो उसके दरवाजे नहीं है और ना अंदर पानी की कोई व्यवस्था है। वह मन ही मन सोचने लगी “ऐसे में लड़कियों के लिए स्कूल आना तो परेशानी वाली बात है तभी लड़कियाँ स्कूल आना बंद कर देती है।”

डॉक्टर उर्वशी शहर जाकर विधायक से मिली, कलेक्टर से मिली और सारी समस्याओं से उनको अवगत कराया। विधायक ने कहा “आपकी बातें सुनकर मैं समस्याओं के बारे में जान पाया हूं। इससे पहले हमें किसी ने इस समस्याओं के बारे में अवगत कराया ही नहीं।”
“सर, मुझे ऐसा लगता है कि आप तक पहुंचने की किसी ने हिम्मत ही नहीं की। इससे पहले के विधायक को अगर किसी ने बात बताई भी होगी तो समस्या पर ध्यान नहीं दिया होगा। जो भी हो, मुझे आपसे बहुत उम्मीद है। मेरे रहते रहते आसपास के सारे गांव में लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट बन जाए तो बड़ी कृपा होगी आपकी।” डॉक्टर उर्वशी ने विधायक से हाथ जोड़कर विनती की।
कलेक्टर ने भी डॉक्टर उर्वशी को विश्वास दिलाया की सभी गाँवों के स्कूलों में टॉयलेट की व्यवस्था अच्छी तरह से की जाएगी।

स्कूल में टॉयलेट बनाने का कार्य गाँव हमीरपुर से शुरू हुआ और देखते ही देखते छः महीने में आस-पास के गाँवों के सभी स्कूलों में टॉयलेट बना दिया गया। डॉक्टर उर्वशी ने घर घर जाकर सभी पालकों से निवेदन किया कि “अपनी अपनी बेटियों को स्कूल भेजें।” भला डॉक्टर उर्वशी की बात कोई कैसे टाल सकता था। सभी गाँव की लड़कियाँ स्कूल जाने लगी। स्कूल में फिर से चहल-पहल बढ़ गई। गाँव की लड़कियाँ शिक्षित होने लगी।

देखते ही देखते डॉक्टर उर्वशी के दो वर्ष निकल गए। वह केवल दो वर्षों के लिए गाँव में पदस्थ हुई थी परंतु इन दो वर्षों में उसने जो कार्य किया है, चाहे वह चिकित्सा के क्षेत्र में हो या फिर शिक्षा के क्षेत्र में, उल्लेखनीय है, जो सदैव याद रखा जाएगा। उसके जाने के पश्चात कोई और नया डॉक्टर आ जाएगा। उसने गाँव के सभी औरतों एवं लड़कियों को सैनिटरी पैड्स इस्तेमाल करना सिखा दिया। गाँव की सभी औरतें एवं लड़कियां अब इस कार्य में निपुण हो गई है और सभी स्वस्थ है।

डॉक्टर उर्वशी की जाने की खबर सुनकर पुनः एक बार अस्पताल के सामने वाले मैदान पर भीड़ एकत्र हो गई। सबके नैन भीगे हुए हैं। सब हाथ जोड़कर खड़े है और कह रहे हैं “कृपया हमें छोड़कर मत जाइए डॉक्टर साहिबा.. मत जाइए डॉक्टर साहिबा। आपके बगैर हमारा गाँव फिर से अनाथ हो जाएगा। अब हमें प्यार से कौन दवा देगा और कौन अच्छी अच्छी बातें बताएगा।”
“आप लोग समझने का प्रयास करिए। दुखी मत होइए, मुझे तो जाना ही पड़ेगा। मेरी जगह पर कोई नया डॉक्टर आ जाएगा। मैं आप लोगों से वादा करती हूं कि नया डॉक्टर भी आप लोगों से वैसा ही बर्ताव करेगा जैसा मैंने किया है। आप लोग इस तरह से रोएंगे तो मेरे कदम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।” डॉक्टर उर्वशी की आंखों में अश्रु की बुंदें झिलमिला रहीं थीं।
गाँव की सारी लड़कियाँ डॉक्टर उर्वशी के सामने आकर हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। सबकी आंखों की अश्रु धार कपोलों को चूम रही है। सारी लड़कियों की जुबान पर सिर्फ एक ही बात है “मत जाइए.. डॉक्टर साहिबा, हमें छोड़कर मत जाइए.. आपके जाने के बाद हमारा ध्यान कौन रखेगा।”

डॉक्टर उर्वशी स्वयं को रोक नहीं पाई, लड़कियों के पास आकर सबको अपने बाहों में भर लिया और अश्रु सिक्त आंखें लिए भर्राई हुई आवाज में कहा “मत रो.. मेरी बच्चियों, मत रो.. मैं तुम लोगों से वादा करती हूं कि बीच बीच में मैं मिलने अवश्य आऊंगी।”

आज पुनः अस्पताल के सामने वैसी ही भीड़ एकत्र हो गई जैसी उस दिन हुई थी जिस दिन डॉक्टर उर्वशी आई थी। आज सब लोग डॉक्टर श्रेया से मिलने आए हैं क्योंकि डॉक्टर श्रेया आज गाँव के अस्पताल में पदस्थ हुईं हैं।

अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर डॉक्टर श्रेया ने भीड़ का स्वागत किया तथा संबोधित करते हुए कहा “देवियों, सज्जनों, बच्चों आप सब को मेरा नमस्कार! आप सबका प्यार देख कर मैं अभिभूत हूँ। जैसा कि मुझे डॉक्टर उर्वशी ने बताया है कि आप लोग बहुत ही प्यारे लोग हैं। वह तो आप लोगों का प्यार छोड़कर जाना भी नहीं चाहती थीं परंतु जाना मजबूरी थी। मैं उनकी जूनियर हूँ। उन्होंने जो भी कार्य किया है, मैं उनका सम्मान करते हुए उन कार्यों को आगे बढ़ाऊंगी, यह मेरा वादा है आप लोगों से। उनके कदमों के निशां मैं मिटने नहीं दूंगी। मैं उन्हीं निशांओं का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ूंगी।
आप लोगों को जब भी कोई परेशानी हो, आप लोग बेझिझक मेरे पास आ सकते हैं और अपनी परेशानियों के बारे में बात कर सकते हैं।”

पूरा वातावरण और चारों दिशाएं डॉक्टर श्रेया की जय जय कार से गुंजित हो उठी..! सब के होठों पर खुशी के पुष्प पुनः प्रस्फुटित होकर वातावरण के सौंदर्य को और बढ़ा दिया..!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

 

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com