सामाजिक

सुसंस्कारों का अंतिम संस्कार : वेलेंटाइन डे

कहते हैं कि प्रेम का व्याकरण यदि सच न होता तो श्री कृष्ण की याद मे राधा रोती नही,यकीनन हम एक ऐसे देश मे रहते हैं जो भगवान श्री कृष्ण एवं राधा के निश्चल,नि:कपट,निर्विकार प्रेम के लिए जाना जाता रहा है।जिस देश ने समूचे विश्व को प्रेम के वास्तविक रूप से अवगत कराया हो,उसी देश में आज फैशन के मारे युवा अपनी ही भारतीय संस्कृति,सुसंस्कारों का अंतिम संस्कार करने पर तुले हुए हैं। यह “एक दिवसीय नग्नता दिवस” यानि कि ‘वेलेंटाइन डे’ जैसे तैसे कट जाता था,लेकिन बिगड़ैल युवा पीढ़ी ने एवं कुछ धन लोभी व्यवसाईयों ने इसे सप्त दिवसीय अश्लीलता,फूहड़ता,नग्नता का घटिया त्योहार बना कर रख दिया है।जिसमे हम अपनी भारतीय संस्कृति का खिलवाड़ होते हुए देखकर इसे आधुनिकता का दुशाला उढ़ा रहे हैं।भारतीय प्रेम किसी विशेष दिवस का मोहताज नहीं है।भारतीय संस्कृति और संस्कारों मे हर दिवस ही प्रेम दिवस है, मनुहार दिवस है। लेकिन जब हम ऐसे प्रेम को सब कुछ मान बैठते हैं जिसके लिए बाजार मे एक पूरा ‘साप्ताहिक पैकेज’उपलब्ध हो तब लगता है कि कहीं न कहीं हम आज भी मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम हैं।यूँ तो सदियों से कहा जाता रहा है कि प्रेम ही पूजा है लेकिन वर्तमान इंटरनेटी दुनिया मे प्रेम अपना वास्तविक वजूद खो चुका है,फेसबुक पर ‘हाय हैलो’ से प्रेम परवान चढ़ता है ‘वाटस्प मे विडियो काल अश्लील चैट’ के साथ प्रेम दम तोड़ देता है।यह कहने मे कोई अतिश्योक्ति नही कि इस दौर का प्रेम अश्लीलता से भरा पापों का घड़ा है।पाप से भरा एक ऐसा घड़ा जो मजबूर माँ-बाप के सिर पर तब फूटता है जब उसका बेटा या बेटी समाज,परिवार को दरकिनार कर घर से भाग कर शादी कर लेते हैं।हाई-फाई सोसाइटी मे रहने वाले खुद को मार्डन कहने वाले माता-पिता इस अश्लील परंपरा को मार्डन कल्चर मानते हैं।सोचिये जब माँ बाप ही आधुनिकता के नाम पर बच्चों को पतन के रास्ते पर भेज रहे हैं,फिर भला औरों की क्या मजाल जो उन्हे रोंके…!आज की युवा पीढ़ी सरेराह लिपटन-चिपटन को ही प्यार समझ बैठी है, जबकि सही मायनों मे यह प्यार नही हवस की श्रेणी मे आता है। एक-दूसरे के लिए इस तरह के आकर्षण के समाप्त होने के बाद ही मन अशांति महसूस करता है एवं घबराहट बेचैनी के साथ ही भूलवश आत्म हत्या जैसे कठोर कदम उठाए जा रहे हैं।हमारा भारत देश अनेकता मे एकता का रंग भरता आया है,यहाँ प्रकृति से प्रेम किया जाता है,पशु पक्षियों से प्रेम किया जाता है,अपने धर्म से संस्कृति से संस्कारों से प्रेम करते हुए हम विश्व को एक सार्थक संदेश देने का कार्य हजारों ईसा पूर्व से करते आए हैं,हमारा भारतीय समाज विविधताओं से परिपूर्ण एवं उतनी ही जकड़नों से भरा हुआ है,जिससे बाहर जाना विचलन माना जाता है और यह जरूरी भी है इंसानियत को एक खूबसूरत एहसास बनाए रखने के लिए।नि:सन्देह हमे ऐसे ‘छद्म दिवस’ का पुरजोर विरोध करना चाहिए जो हमारे आने वाली पीढ़ी को दिक् भ्रमित करने का कार्य कर रहा हो,यदि हमे सदिंयो तक अपने आर्यवर्त के वजूद को अक्षुण्य बनाए रखना है तो युवा पीढ़ी को कुपंथ पर चलने से सदैव ही रोंकना होगा।दुनिया भले नाक तक डूबी रहे नर्क मे हम सब सलामत रहेंगे यदि संस्कारित रहेंगे ।।

— आशीष तिवारी निरमल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616