लघुकथा

चाल देख ले

शैला आज सुबह से घटनाक्रम में क्रमशः होते बदलाव पर मंथन कर रही थी. किससे कहां पर गलती हो रही है, उसे समझ नहीं आ रहा था.
शैला पांवों में पायल पहने महावर लगाए नवरात्रि महोत्सव में भाग लेने के लिए तैयार थी. रेडियो पर गाना चल रहा था-
”मेरे पैरों में घुंघरू बंधा ले तो फिर मेरी चाल देख ले.”
शैला की पायल उस मधुर धुन पर थिरकने को मचल गई. पायल को मनाने में चाची रूठ गई. चाची की अपनी बेटी थिरकना तो परे रहा, चलने में भी अक्षम थी. ऐसे में उसको भला शैला की थिरकन कहां सुहाती! ”ठहर, तेरी चाल मैं सीधी करती हूं.” उसने मन ही मन कहा और शोर मचा दिया-
”अरे, मेरी तिजोरी में से दस हजार रुपये किसने निकाल लिए? मिल नहीं रहे, शैला कहीं तूने तो नहीं लिए?” शैला को सामने देखते हुए वह बोली.
”नहीं चाची जी, मैं भला क्यों लेने लगी? आप मेरी हर तमन्ना पूरी कर देती हैं, ममी के जाने के बाद आपने ही तो मेरी हर इच्छा का ख्याल रखा है!”
”तो फिर कहां गए? देख, सीधे-सीधे बता दे, नहीं तो पुलिस को बुला लूंगी.”
शैला ने रुपये लिये होते, तो बताती न! चाची को नहीं मानना था, उसने शैला को अपराधी ठहराते हुए पुलिस को बुला लिया. उसने पुलिस को नोटों के नंबर भी बता दिए थे. पुलिस को तो अपना काम करना था, वह तो बेड़ी पहनाकर दोषी को थाने ले जा सकती थी. अब पैरों में पायल के साथ बेड़ी भी सज गई थी.
थाने में महिला कर्मचारियों ने उससे सच-सच बोलने को कहा, ताकि उसको बेड़ी से निजात मिल सके. शैला ने निर्भीकता से कहा- ”पुलिस आंटी, मुझे बेड़ी से डर नहीं लगता, झूठ और अन्याय से नफ़रत है.”
”तो फिर सच क्या है?” पुलिस आंटी का अगला सवाल था.
”आंटी, मैं दावे से तो नहीं कह सकती, पर सुबह चाची जी नोटों को देखकर नीली डायरी में कुछ लिख रही थीं. फिर मैंने उन्हें अपने पलंग के बैक ड्रॉअर में कुछ छिपाते देखा था. आप तुरंत उसकी तलाशी ले सकती हैं.”
पुलिस आंटी ने तुरंत अपनी टीम भेज दी. वहां से नोट बरामद हो भी गए. अब सवाल यह था, कि ये नोट वहां चाची ने रखे या शैला ने! सो नोट फॉरेसिक जांच के लिए भेज दिये गये. दोनों की उंगलियों के निशान पहले ही लिये जा चुके थे. नोटों पर चाची की उंगलियों के निशान पाये गये. नोटों के नंबर भी नीली डायरी में मिल गये थे. वह लिखावट भी चाची की निकली.
बेड़ी ने चाची को जकड़ लिया था. अब चाल देखने की बारी शैला की थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “चाल देख ले

  • लीला तिवानी

    जो दूसरों के लिए खड्डा खोदता है, उसके लिए पहले से ही खाई तैयार होती है, चाची के साथ भी ऐसा ही हुआ. अब सब उसकी चाल को देखेंगे. शैला की समझदारी-
    ‘‘आंटी, मैं दावे से तो नहीं कह सकती, पर सुबह चाची जी नोटों को देखकर नीली डायरी में कुछ लिख रही थीं. फिर मैंने उन्हें अपने पलंग के बैक ड्रॉअर में कुछ छिपाते देखा था. आप तुरंत उसकी तलाशी ले सकती हैं.”

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