लघुकथा

गर्व

फूलों की दुकान में बहुत चहल पहल हैं हो भी क्यों नही आज चौदह फरवरी जो है । नवयुवक युवतियां आ कर अपनी अपनी पसंद के गुलाब ले रहे है । अपने आभासी प्रेम का इज़हार जो करना है । वहीं उसी दुकान पर आगे की पंक्ति में सजे हुए विदेशी गुलाब अपनी किस्मत पर इठला रहे है ।
एक गुलाब ने अपनी ऐंठ दिखाते हुए अभिमान से बोला ” देखो साथियों हमारी कितनी पूछ होती है हमेशा खास तो आज ,इन छोटे बेढंगे गुलाब को देखो कोई नही पूछता इनको ये तो बस मंदिर में ही जाते है ” ।
देसी नन्हा गुलाब उदास हो गया उसकी आँखों में से आंसू निकलने वाले ही है कि … एक हरी सी गाड़ी आ कर रुकती है उसमें से दो लोग खाकी वर्दी पहने आते है ” भाई तुम्हारे पास देसी गुलाब है क्या ??”
” हाँ, हाँ है न साब जी “।
” वाह ,क्या बात है जल्दी से उनका एक सम्मान चक्र बना दो उनकी खुशबू से एक शहीद का तन महकेगा ।”
हां , ज्यादा ही तो सारे साथ में दे देना “।
” जी ,आप थोड़ा रुकिए “।
वो सारे काम छोड़ उनका काम करता है । उनको देते हुए वो उन सभी के पैसे नही लेता।
” साहब आज ये सारे गुलाब मेरी तरफ से लो , ये एक छोटी सी श्रद्धांजलि है । उनके लिए जो हमारे देश के लिए हुए कुर्बान “।।

अब अभिमान करने करने की बाती नन्हे देसी गुलाब की है । वो गर्व महसूस कर रहा है खुद पर ।।

— सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।