गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – तपती दुपहरी

तपती दुपहरी है, उसपे बेरहम तन्हाई है,
दिल को बहलाने तुम्हारी याद चली आई है ।

तुम नहीं, लेकिन तुम्हारा एहसास मेरे पास है
बेवजह ही आंख मेरी किसलिए भर आई है ?

गर्म हवाओं ने भी ना जाने क्या जादू किया कि,
हुआ यूं महसूस जैसे वही खुशबू  तुम्हारी आई है ।

मन बड़ा चंचल है , बेकल है, बहुत उदास है ,
हर समय की ये बेखूदी मेरी जान पर बन आई है ।

तपती दुपहरी है उसपे बेरहम तन्हाई है।
दिल को बहलाने तुम्हारी याद चली आई है।।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)