गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बहुत हुई आवारगी अब तो संभल जाने दो
निभाना है मुझे राष्ट्रधर्म मत रोको जाने दो

अंधेरा बहुत गहरा है एक चिराग़ जलाने दो
खोल दो पिंजरें सारे परिंदों को उड़ जाने दो

वे कोई ग़ैर नहीं हैं औलादें हैं मेरी मां की
मत रोको उन्हें मेरे गले से लग जाने दो

सुना है बहुत शिकायतें हैं उन्हें मेरी ग़ज़ल से
करेंगे वो भी तारीफ़ मेरी एक बार मर जाने दो

कहतीं हैं बहुत शराफ़त है तेरे इश्क़ में ‘कौशिक’
लगायेंगी इल्ज़ाम खुद ही मशहूर तो हो जाने दो

:- आलोक कौशिक

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com