लघुकथा

ईअरर्फ़ून

           गुरदीप, अपने माँ बाप का इकलौता बेटा था। माँ बाप का लाडला और पढ़ने में बहुत हुशिआर था। यूँ तो गुरदीप सारे रिश्तेदारों और दोस्तों में हरमन पियारा था लेकिन अपने माँ बाप के साथ तो दोस्तों जैसा था। उस के दो ही शौक थे, एक पढ़ाई और दूसरे बॉलीवुड के गाने सुनना। जब भी गाने सुनता, ईयरफोन कानों में लगा लेता  और जिधर भी जाता मज़े से गाने सुनता रहता। गुरदीप ने साइंस में मास्टरज़ डिगरी कर ली थी और कल को अपने माँ बाप के साथ यूनिवर्सिटी को डिग्री का सर्टिफिकेट लेने जाना था। आज वोह मैटरो पकड़ कर एक दूसरे शहर से उस दिन पहनने के लिए नए कपडे ले कर आ रहा था और कानों में ईयरफ़ोन लगाए मज़े से गाने सुन रहा था। जब मैट्रो खड़ी हुई तो वोह पीछे के दरवाज़े से उतर गया। मैटरो लाइनज़ के दूसरी ओर कुछ दुकाने थीं। कुछ और खरीदो फरोखत करने की गरज़ से गुरदीप, मैट्रो लाइनज़ क्रॉस करने लगा। एक मैट्रो दूसरी ओर से भी चल पढ़ी थी लेकिन ईअरफोन कानों को लग्गे होने की वजह से गुरदीप को आती हुई मैट्रो की आवाज़ सुनाई नहीं दी या वोह गाने में इतना मस्त था, यह तो भाग्वान् याने । मैट्रो के ड्राइवर ने मैट्रो खड़ी करने की बहुत कोशिश की लेकिन गुरदीप इतना करीब था कि ड्राइवर यह ऐक्सीडैंट बचा नहीं सका। एक चमकता हुआ सितारा अचानक बुझ गया। माँ बाप का किया हाल हुआ होगा, यह तो सभी समझते हैं लेकिन शहर में जिस जिस ने सुना, किस किस की आँखों में आंसूं नहीं आये।