गीतिका/ग़ज़ल

दिया की रोशनी सी

दिया की रोशनी सी जल उठी हो तुम।
कभी अर्धांगिनी बन चल उठी हो तुम।

कभी माँ-बाप के नयनों में बस करके।
कभी ससुराल जाकर छल उठी हो तुम।।

कहीं भर शिशकियाँ,दम तोड़ देती हो।
कहीं चंडी बनी, फिर चल उठी हो तुम।।

वही जो प्यार की मूरत कही जाती।
अरे!तेज़ाब से क्यों जल उठी हो तुम।।

वैसे विहग भी चूजे को अपने पालते हैं।
मगर क्यों गर्भ में ही तल उठी हो तुम।।

— लाल चन्द्र यादव

लाल चन्द्र यादव

ग्राम शाहपुर, पोस्ट मठिया, जि. अम्बेडकर नगर उ.प्र. 224149 शिक्षा एम.ए. हिन्दी, बी.एड. व्यवसाय शिक्षक, बेसिक शिक्षा परिषद, जिला-बरेली