गीत/नवगीत

एक युद्ध-गीत

रोको ना रणभेरी के स्वर, एक बार बज जाने दो
होता है गर आज युद्ध तो, एक बार हो जाने दो।

सहना अच्छी बात है पर, सहने की सीमा होती है
हद से ज़्यादा सहना भी, कायरता जैसी होती है
हाथ जोड़कर ना माना है, हाथ तोड़ समझाने दो
होता है गर आज युद्ध तो, एक बार हो जाने दो।

तीर चढ़ाकर गांडीवों पर अरिदल पर संधान करो
एक बार फिर चक्र सुदर्शन का मिलकर आह्वान करो
हुए निनाबे अब तो पूरे, सौ के पार ना जाने दो
होता है गर आज युद्ध तो, एक बार हो जाने दो।

लहू देश के लिए है होता, कब हमको इनकार है
पर कायरता के हाथों, पिट जाना क्या सत्कार है
मातृभूमि के लिए समर्पित, गर्दन है कट जाने दो
होता है गर आज युद्ध तो, एक बार हो जाने दो।

गाल बजाना बंद करो अब, गाल लाल उसके कर दो
झटके से गर काम चले ना, तो हलाल उसको कर दो
कीमा कर दो मक्कारों का, बोटी में बँट जाने दो
होता है गर आज युद्ध तो, एक बार हो जाने दो।

अबके गर मौका खोया तो, शायद माफ नहीं होगा
‘साफ-सफाई का उत्सव’, बातों से साफ नहीं होगा
एक बार में घर का कूड़ा, सरहद से हट जाने दो
होता है गर आज युद्ध तो, एक बार हो जाने दो।

अभी चिताओं की राखों में, सुलग रही चिंगारी है
भले हुईं खामोश हो साँसें, मगर हरारत जारी है
ज्वालमुखी एक बार दिलों की धरती का फट जाने दो
होता है गर आज युद्ध तो, एक बार हो जाने दो।

— शरद सुनेरी