कविता

प्रेम

प्रेम नहीं समझता
शब्दों का चलन
ये तो व्यवहारों को महसूसता है
दिल से पढ़ता है एहसासों को
और जज्बातों से गढ़ता, प्रेम का ताजमहल

खामोश मन की गहराई में तैरती
उत्तेजनाओं की लहरों को
हृदय की पावन धारा में समेट लेता है

तरंगित जज्बातों की उफनते ज्वार को
प्रेमसिक्त प्रवाह में शीतल करता है

प्रेम शून्य है
कोई छोर नहीं इसका
इस परिधि में प्रेमी युगल
जिंदगी के अंतिम लम्हों तक
साथ जीने-मरने का सफर करते है।

*बबली सिन्हा

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