लघुकथा

नारी उन्मुक्ति : एक समाधान

ब्रेकफास्ट के बाद अखबार देखते हुए रेखा ने कहा, “जहां देखो रेप; दरिंदगी के बाद जलाना-मारना;  और मी-टू  के साथ नारी समानता की ही ख़बरें भर देते है ! ये सम्पादक भी ‘मसाले वाले’ हेडिंग्स छापकर फ़र्ज़-अदायगी करते हैं करें भी क्या;  बेचारे ‘Prestitute” का अदना सा मोहरा भर हैं ना !!”    चेहरा आवेश-आक्रोश से तमतमा उठा था, 65 वर्षीया रेखा का, जिसने M. A. (हिन्दी व इंग्लिश), Ph. D. और M. Ed. करने के साथ 15 साल टीचिंग और फिर 10 साल तक स्कूल चलाया था, और बच्चों की शादी के बाद उसे बंद करना पड़ा था.  कुछ देर बाद वो फिर बोली, “जबसे ये मुँहकाला करने वालोँ को फांसी का क़ानून आया है, मरों ने लड़कियों को जलाकर मारना और शुरू कर दिया है.

कानून वालोँ की लड़कियाँ ना तो अकेली जाएँगी, और ना वो कभी ये सब झेलेंगे. पली-पलाई बेटी खोने का दर्द कौन समझ सकता है?”   सुरेश ने देखा, रेखा रुआँसी हो गई थी : उसे अपनी शिवांगी की घटना जब-तब परेशान करती रहती है.   वो फिर बोली, “और चाहें जितने क़ानून बना लो या हज़ारों फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट खोल दो, ये जजों वकीलों के चक्कर में पिसती तो लड़की और उसके घरवाले ही हैं ना!?”बगल में बैठा सुरेश बोला, “अब हम-तुम इससे ज़्यादा और कर ही क्या सकते हैं.    सारा काम तो क़ानून के हिसाब से ही चलेगा ना?” “क़ानून गया तेल लेने, ये मरे वकीलों और तारीखों में घसीटते-2 ज़िंदा लडकियां भी मरी जा रही हैं;

केस के चलते कोई लड़के वाले भी बात तक नहीं सुनने को तैयार होते हैं, और ऊपर से वो बचाव पक्ष के वकीलों के भोंडे सवाल ‘कैसे;  कहाँ-2;  क्या और फिर क्या किया’ वाली जिरह में अनगिनत बार उसका रेप भरी अदालतों में होता चलता रहता है!” तमतमाते चेहरे से वो साक्षात चंडिका लग रही थी.  “आग लगे, ये नारी समानता और नौकरी की होड़ में पड़ने वाली लड़कियों की ज़िद को. अरे बराबरी क्या,  तुम  तो लड़कों से दुगुनी – चौगुनी सक्षम – समर्थ हो…. बस, ज़रुरत है तुम्हें अपने स्वाभिमान को जगाने की. बंद करो मर्दों की अति की देखभाल अपनी सुध-बुध खोकर और अभी से ही अपने लड़के – लड़की में पहले ख़ुद भेद-भाव करना बंद करो. समानता बोलकर या माँगकर नहीं, विश्वास और परस्पर आदर से, मिलकर हर काम करना दिखाकर करने से ही सिखलाई जा सकती है.” सुरेश जानता था इस विषय पर रेखा के विचार और सोच व अनुभव बहुत विस्तृत और दृढ़ व सुनियोजित हो चुके होंगे, तभी वो ऐसे धारा-प्रवाह में बोले चली जा रही है! ध्यान से सुरेश उन सब बातों को मन ही मन नोट करता जा रहा था.

रेखा के जोश का ज्वालामुखी आज धधकने लगा था, आसानी से शांत नहीं होगा. फिर से कहीं B.P. ना बढ़ जाए, इस डर से सुरेश बोला, “अच्छा, ये बताओ इसके निदान के बारे में तुम क्या सोचती हो, क्या और कैसे किया जाना चाहिए, और उसमें हममें से कौन-2 क्या मदद कर सकते हैं?”“भगवान् भला करे रीता का, उसने दूसरी प्रेगनेंसी के शुरू में ही नौकरी छोड़ने का निर्णय लेकर नोटिस दे दिया था, और फिर अब देखो कितने अच्छे तरीके से कविता और रोहन को बिना किसी भेद-भाव के संस्कारपूर्वक पाल रही है, और एक आपके लाड़ ने दोनों बेटों को छुट्टा, आवारा और लापरवाह बना दिया है, और ऊपर से मौक़ा मिलते ही उसके लिए भी मुझे ही ताने मारते रहते हो!”झुंझलाहट को दबाते हुए, सुरेश बोला, “भाग्यवान, कितनी बार और माफ़ी माँगूं उस गुनाह की – जो मुझसे कहीं ज़्यादा मेरे माँ-बाप ने अपने टाइम में किया था, और तुम्हें तो पता है कि मैं हमेशा ही अपनी ग़लतियों पर तुम्हें ही तो दोष देता हूँ, अब ये आदत भी Heriditary है, इस उम्र में छूटना भी मुश्किल है.” फ़ौरन तुनककर रेखा बोली, “वाह-वाह, उमर तो बस तुम्हारी हुई है, मुझपर तो फिर से जवानी छा रही है ना? मैं कैसे बहुओं, बच्चों और तुम्हारे हिसाब से अब तक अपनी सारी आदतें बदल रही हूँ? तुम्हें तो बस, अपना फ़ोन और फेसबुक भला, सारा दिन उसी में घुसे रहते हो!”

उठकर, रेखा को प्यार से आलिंगनबद्ध करते हुए, सुरेश ने मनाने की शुरूआत करने में ही भलाई समझी. गाल से गाल चिपकाते हुए वो बोला, “अब ग़ुस्सा थूक दो, और Finally समझाओ, क्या करना चाहती हो?””हटो भी, अभी कर रहे थे उम्र की बातें, और फ़ौरन ये चोंचले चालू!”  दिखावे को कसमसाते हुए वो बोली, “रीता की रोहन के लिए क्रेश की ज़रुरत हम घर में ही क्यों ना पूरी कर लें? उसे भी फिर से नौकरी मिल जाएगी, और हमें-तुम्हें भी अपना टाइम साथ-2 गुज़ारने का मौक़ा मिल जाएगा. अपनी पुरानी ग़लतियों से सीखे सबक़ से, रोहन के साथ-2 कुछ और बच्चों को संस्कारपूर्ण किस्से-कहानियों से बहलाते रहेंगे, और मदद के लिए, दो अच्छी सी आया या नर्सरी टीचर्स को फिर से बुला लेंगे!” आइडिया सुरेश को भी अच्छा लगा, जल्दी ही वो इसे शुरू करने जा रहे हैं!