कविता

मदिरा सवैया

“छंद मदिरा सवैया”

वाद हुआ न विवाद हुआ, सखि गाल फुला फिरती अँगना।
मादक नैन चुराय रहीं, दिखलावत तैं हँसती कँगना।।
नाचत गावत लाल लली, छुपि पाँव महावर का रँगना।
भूलत भान बुझावत हौ, कस नारि दुलारि रह ना ढँगना।।-1

राग लगावत हौ उठि कै, तड़फावत हौ सखि साजनवा
आपुहि आपु न मोर नचै, बदरी बरखा लखि सावनवा
कोयल रात कहाँ कुँहके, कब गावत दादुर आँगनवा
धीरज राखहु हे ललिता, बनि आवत साजन पाहुनवा।।-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ