कविता

मुक्तकाव्य

“मुक्त काव्य”

जीवन शरण जीवन मरण
है अटल सच दिनकर किरण
माया भरम तारक मरण
वन घूमता स्वर्णिम हिरण
मातु सीता का हरण
क्या देख पाया राम ने
जिसके लिए जीवन लिया
दर-बदर नित भ्रमणन किया
चोला बदलता रह गया
क्या रोक पाया चाँद ने
उस चाँदनी का पथ छरण
ऋतु साथ आती पतझड़ी
फिर शाख पर किसकी कड़ी
चलकर हवाएँ कब मुड़ी
जब आ गई मृत्यु मोक्ष ले
कब रोक पाता आवरण
जीवन शरण जीवन मरण
है अटल सच दिनकर किरण।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ