लघुकथा

श्रृंगार

दुर्गा देवी खुद बचपन में नहीं पढ़ पाईं तो क्या हुआ, वे शिक्षा के महत्त्व को भलीभांति समझती हैं. देने वाले ने उनको जैसा सुंदर रूप दिया है, वैसे ही सुंदर गुण भी. धन की उनके पास कमी नहीं है, न ही देने की महत्ता को वे कम आंकती हैं. उनके बारे में लोग कहते हैं- ”सबके दो हाथ होते हैं, पर दुर्गा देवी के आठ हाथ हैं, वे आठ हाथों से बांटती है. उनके अपने आठ स्कूल हैं. ये स्कूल व्यवसाय के केंद्र नहीं हैं, समाज-सेवा का जीता-जागता रूप हैं. सरकार ने उनके प्रयत्न को सराहा है और हर स्कूल के लिए उनको आंशिक सहायता प्रदान करने करने के साथ मान्यता भी दी है. समाज ने उनकी दिव्यदृष्टि को पहचाना है और खुले मन से उनकी सहायता कर रहे हैं.”

खुद मैंने भी सुबह-सुबह उनको तैयार होकर स्कूल के दौरों के लिए जाते देखा है. किसी स्कूल को पता नहीं होता, कि दुर्गा देवी किस समय उनके स्कूल को दर्शन देने आएंगी, इसलिए हर स्कूल हर समय चुस्त-दुरुस्त चल रहा होता है.

चुस्त-दुरुस्त रहने के लिए वे खुद सादा व हल्का भोजन लेती हैं और महल जैसे बंगले में भी जमीन पर शयन करती हैं. चमकती सादा-सफेद साड़ी में उनके चेहरे का तेज दमकता रहता है. सादा जीवन-उच्च विचार के साथ शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के सिद्धांत उनका श्रंगार हैं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “श्रृंगार

  • लीला तिवानी

    बहुत-से लोग ऐसे हैं, जो खुद बचपन में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए, लेकिन वे दूसरों को शिक्षा देकर ज्ञान की ज्योति जलाए रखते हैं, यही उनका श्रृंगार होता है. आज भी इस सदी की शुरुआत में अमेरिकी दिग्गज टेनिस प्लेयनर आंद्रे अगासी ने 90 चार्टर स्कूल खोलने में $1 अरब से ज्यादा निवेश किया है. वे भी खुद 8वीं क्लास के बाद पढ़ाई नहीं कर सके थे.

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