हास्य व्यंग्य

भक्त-चम्मच-युद्ध (व्यंग्य)

इन दिनों देश में ‘भक्त-चम्मच- युद्ध’ छिड़ा हुआ है। भक्त अपने को सर्वश्रेष्ठ ‘भक्त-राज ‘सिद्ध करना चाह रहे हैं तो दूसरी ओर कुछ चमचों ने कमर कस ली हैं वे ही ‘चम्मच-शिरोमणि’ के पद को सुशोभित करेंगे। इसके लिए जहाँ एक ओर भाषा का अतिक्रमण किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर शिष्टाचार का चीरहरण करने में भी कोई कोताही नहीं हो रही है। पूरा देश राजनैतिक हमाम बन गया है जिसमें दोनों ही पक्ष के स्नानप्रेमी शान से कपड़े उतार कर जा रहे हैं। जिन्होंने थोड़े बहुत कपड़े पहन रखे हैं, उन्हें नंगा करने का काम प्रतिद्वंद्वी बखूबी कर रहे हैं। दोनों ही दल के सरदार अपने पहलवानों की पीठ थपथपा रहे हैं-‘शाब्बास बेटा!’ भक्तों का सीना फूलकर छप्पन इंची हो गया है कि पवनपुत्रों नें ‘आतंकवाटिका’ में आग लगा दी। चमचों में रोष है कि उन्हें बोटी बटोरने का अवसर भी ना मिला। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचने के अलावा क्या कर सकती है? बेचारे क्रोध में अपने ही नाखूनों को घायल किए जा रहे हैं, उल्टी-सीधी बयानबाजी कर। भक्तों को ऐसा अन्याय चमचों पर नहीं करना चाहिए। हनुमान ने भी लंका-दहन किया था तो अकंपन और अक्षय कुमार की बाॅडी को उठाकर नहीं लाया था। तब तो न विडियो सूटिंग थी न सैल्फी का चक्कर और न ही इंटरनेट। संजय का भी अविष्कार त्रेता में नहीं द्वापर में हुआ था। पता नहीं कैसे भक्तों के खेमे में खबर पहुँच गई और सबने बिना प्रमाण मान ली। अच्छा!उस खेमें में सब भक्त थे इसलिए किसी ने प्रश्न नहीं उठाया। यदि एक भी चमचा होता तो बजरंगी को छठी का दूध याद आ जाता।
चापलूसी और श्रद्धा दो मानवीय भावनाएँ हैं। चम्मच से चापलूसी की मलाई खायी जाती है। भक्त को श्रद्धा का प्रसाद प्राप्त होता है। समर्पण दोनों की भावनाओं में होता है किंतु चमचागिरी में जहाँ स्वार्थ और काइयाँपन पाया जाता है वहीं श्रद्धा का संबंध सम्मान और लोकहित से होता है। इसलिए भक्त होना बुरी बात नहीं। हाँ, अंधभक्ति निसंदेह बुरी होती है। चम्मच जब भक्त का चोला पहन ले तो अंधभक्त बन जाता है। आज स्वामी को प्रसन्न करने के लिए चमचे अंधभक्तों की भूमिका में आ गए हैं। रंगे सियार बन गए हैं। हो यह रहा है कि एक सियार चिल्लाता है-“हुआआ-हुआआ” तो दूसरा भी वंदना के उन सुरों में अपना सुर मिला देता है।
समझ नहीं आ रहा यह कैसी महाभारत है? शकुनि सीमा पार मुस्कुरा रहा है और कौरव-पांडव कीचड़ उछालने में लगे हैं। इस सब में एक ही बात अच्छी है कि अभिमन्यु चक्रव्यूह भेद कर सकुशल लौट आया, क्योंकि ‘अभिमन्यु’ न चमचा होता है और न भक्त!!

— शरद सुनेरी