कविता

होली

वसन्त से शुरू होते रंग
होली तक गीले हो जाते
टेसू के पानी में घूल जाते
इत्र की खुशबू
फूलों की पंखुडियों
से मिश्रित रंग
चढ़ जाता है
विविध रंगों का हो जाता आसमाँ
इंद्रधनुषी सोच
समां जाती है
रंगो में
हुरियारे में
ढ़ोल-नगाड़े ताशे-झाँझ
धमार की गूँज
नव-यौवन होते पुल्लकित
यह सिर्फ रंग तो नहीं
न ही कोई विचार ही है
रंगो के पीछे रंगो के प्रश्न
उत्तर भी रंग
कैसे कजरारे हैं
होली के संग
होली के हुरियारे हैं।

— कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377