लघुकथा

पर्दा

” अरे अरे ….रुको ! कहाँ जा रहे हो ? जानते नहीं अब घर में नइकी बहुरिया भी आ गई है । ” सुशीला ने घर के अंदर के कमरे में जा रहे रामखेलावन को आगे बढ़ने से रोका ।
” अरे वही बहुरिया है न गोपाल की अम्मा जो ब्याह के पहले स्टेज पर गोपाल के बगल वाली कुर्सी पर बैठी रही …..? अब उसमें का बदल गया है कि हम उसको देख नहीं सकते और उ हमरे सामने नहीं आ सकती ? ” रामखेलावन ने कहा ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “पर्दा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा ह , अब यह दकिआनूसी विचार छोड़ देने चाहिए . शादी के वक्त पैलेस में तो रानी बन कर बैठी होती हैं , उस के बाद किया फर्क आ गिया !

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