उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग -42 )

ममता की परीक्षा ( भाग – 42 )

” गोपाल बेटा ! साधना मेरी इकलौती संतान है । मेरे लिए वह बेटी के साथ साथ बेटा भी है । मुझे तुम पर पूरा यकीन है फिर भी यह नहीं चाहता कि तुम दोनों मुझसे दूर कहीं शहर में जाकर बस जाओ ! इसकी कई वजहें हैं । बेटा ! जितनी आसानी से कह रहे हो न कि शहर में कोई नौकरी कर लेंगे , उतनी आसानी से नौकरी मिलती नहीं , चप्पल घिस जाते हैं लोगों के नौकरियों की तलाश करते । और मानो कोई छोटी मोटी नौकरी मिल भी गई तुम्हें तो तनख्वाह के नाम पर क्या पाओगे ? तीस दिन घिसने के बाद अधिक से अधिक सौ रुपये ! अब उस सौ रुपये में अपनी गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलाओगे ? घर भी किराए का ही होगा , बिजली का बिल ,राशन , और मैंने तो सुना है कि शहर में पीने का पानी भी मुफ्त नहीं मिलता ! हर जरुरत पूरी करने के लिए पैसा ही होना चाहिए ! और ऐसी हालत में शुरू होती है अनावश्यक चीजों के उपयोग में कटौती । भले कुछ चीजें अनावश्यक लगती हैं लेकिन मजबूरी वश उन चीजों का त्याग मन में हीन भावना बढ़ाता है । दिमाग में हमेशा अभावों से निबटने की चुनौती सी गूंजती रहती है और नतीजे में मानसिक शांति छीन जाती है । अशांति का वातावरण पैदा हो जाता है और ध्यान रखो अभावों से ही कलह का जन्म होता है । अभाव चाहे पैसे का हो , मन की शांति का या फिर आपसी विश्वास का ! और मैं नहीं चाहता कि किसी भी वजह से तुम दोनों को किसी चीज की कमी महसूस हो और कलह पैदा हो ! इसके अलावा दूसरी वजह भी है बेटा ! शहर में रहकर तुम ज्यादा दिन अपने घर से दूर नहीं रह पाओगे । माफ़ करना बेटा ! इस मामले में मैं थोड़ा स्वार्थी हो गया हूँ । मैं अपनी बेटी की जिंदगी को लेकर कोई खतरा नहीं उठाना चाहता । मैं ही नहीं कोई भी स्वाभिमानी बाप अपनी संतान की बेअदबी सहन नहीं कर पायेगा और यही वजह है कि मैं इस बात में तुमसे सहमत नहीं हूँ बेटा ! माफ़ करना तुम दोनों का शहर जाना संभव नहीं हो पायेगा । ” कहने के बाद मास्टर एक पल के लिए रुके थे । उनकी साँसे तेज हो गई थीं और दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं । उखड़ी हुई साँसों पर काबू पाते हुए मास्टर ने आगे कहना शुरू किया ,” बेटा ! तुम रोजी रोटी की बिलकुल भी चिंता मत करो । ईश्वर की कृपा से धन भले न कमा सका लेकिन इज्जत बहुत कमाया हूँ । भगवान ने अगर चाहा तो यहीं इसी गाँव के आसपास मैं तुम्हारे लिए काम का कोई न कोई इंतजाम अवश्य करा दूँगा । शहर जाकर ज्यादा कमाने से गाँव में अपनों के साथ रहकर थोड़ा कम कमाना भी बेहतर है । कम से कम अपने लोग साथ तो रहेंगे । तुम यहाँ बैठो और साधना से बात करो ! मैं जरा जटाशंकर महाराज से लग्न मुहूर्त की बात करके आता हूँ । दिन भर की भागदौड़ के बाद यही समय है उनके मिलने का । शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए । ” कहने के साथ ही मास्टर खटिये से उठकर अपना जूता पहनते हुए चलने को उद्यत हुए ही थे कि अचानक जैसे उन्हें कुछ याद आ गया हो । मुड़कर साधना को आवाज देते हुए बोले ,” जरा टॉर्च ले आना बेटी ! क्या पता वापसी में अँधेरा हो गया तो काम आएगी । ”
साधना ने तुरंत टॉर्च लाकर उन्हें थमा दिया था । टॉर्च हाथ में थामे मास्टर तेज कदमों से गाँव की तरफ निकल पड़े ।
उनके जाने के बाद गोपाल खटिये पर बैठा सभी घटनाक्रम पर विचार करने लगा । कितनी जल्दी उसकी जिंदगी बदल गई थी । अभी मात्र 22 घंटे पहले ही वह साधना के साथ इस गाँव में आया था तब उसका मन तमाम तरह की आशंकाओं से ग्रस्त था । क्या होगा ? यही वो सवाल था जो बस से उतरकर गाँव में दाखिल होते हुए उसके कदमों को जकड़े हुए था । लेकिन अब इस घडी वह आश्वस्त था अपनी जिंदगी को लेकर । अचानक हुए फैसले ने उसके मन में उमंग की नई लहर का संचार कर दिया था । उसके अंतर की ख़ुशी से उसका चेहरा दमक उठा था ।
मास्टर को जाते हुए देखती रही साधना कुछ पल और उनके आँखों से ओझल होते ही उसका ध्यान गोपाल की तरफ गया जिसका चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था । साधना ने उत्सुकता से पूछा ,” क्या हुआ गोपाल बाबू ? बहुत खुश नजर आ रहे हो ? ”
” सचमुच ! क्या तुम्हें नहीं पता ? ” गोपाल ने पूछा ।
” नहीं तो ! ” बताते हुए साधना के गोरे मुखड़े पर हल्की सी मुस्कराहट थी ।
” लेकिन बाबूजी ने तो मेरे सामने ही तुमसे बात की थी ! और फिर तुम्हारा वो शर्माना ! वो क्या था ? ” कहते हुए गोपाल के चेहरे पर हैरानी के भाव थे ।
” वो ! वो तो बाबूजी ने मुझसे मेरी मर्जी पूछी थी तो मैं क्या करती ? गाँव में तो लडके भी अपने शादी की बात सुनना नहीं पसंद करते । फिर मैं तो लड़की हूँ ! ” कहते हुए साधना मुस्कुराई थी । गोपाल की निगाहें एकटक उसकी तरफ जमी हुई थीं ।
” क्या कहा ? तुम लड़की हो ? बाबूजी ने तो अभी अभी मुझसे कहा था कि तुम लड़की ही नहीं लड़का भी हो ! ” कहते हुए गोपाल शरारत से मुस्कुराया था ।
साधना उसकी शरारत समझ चुकी थी “, तो उन्होंने गलत कहाँ कहा था ? मैं उनके लिए लड़का ही हूँ और आपके लिए लड़की ! ” मजाक में प्रत्युत्तर देते हुए भी साधना के चेहरे पर लाज की लाली गहरा गई थी । कुछ पल की ख़ामोशी के बाद साधना बोली ,” आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया ! ”
उसकी बेसब्री का मजा लेते हुए गोपाल ने कहा ,” साधना ! तुम कितनी भोली हो ! बाबूजी ने तुमसे तुम्हारी मर्जी पूछी ! तुम्हारी ख़ामोशी की जुबान भी बाबूजी ने समझ ली और तुम हो कि तुमसे मेरे चेहरे पर छाई ख़ुशी की वजह भी नहीं पढ़ी जा रही । चलो मैं ही बता देता हूँ ! बाबूजी ने मेरी बात मान ली है और मुझे तुम्हारा जीवनसाथी बनाना स्वीकार कर लिया है । बस इसीलिये अपने भाग्य पर इतरा रहा हूँ ! क्या तुम खुश नहीं हो ? ”
” भक्क ! ” कहते हुए साधना ने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया । लाज की लाली उसके गोरे गालों को कनपटियों तक सुर्ख कर गई । कुछ पल यूँ ही बीतने के बाद साधना ने अगला सवाल दाग दिया ,” लेकिन बाबूजी कहाँ गए हैं इस अँधेरे में ? ”
” बाबूजी गए है जटाशंकर महाराज के यहाँ हमारे शादी का मुहूर्त निकलवाने । ” कहते हुए गोपाल के चेहरे की रौनक और बढ़ गई थी ।
” ठीक है ! आप यहीं आराम कीजिये ! तब तक मैं फटाफट भोजन तैयार कर लूं ! ” कहने के बाद गोपाल के जवाब की प्रतीक्षा किये बिना वह दालान में दाखिल हो गई और आंगन में जाकर भोजन की तैयारी करने लगी ।
दालान की चौखट पर एक दीया टिमटिमा रहा था ।
बाहर घुप्प अँधेरा फैला हुआ था । अगल बगल के घरों के लोगों की आपस में बातें करने की आवाज जोर जोर से आ रही थी !
लगभग आधे घंटे से अधिक वह यूँही लेटा रहा था खटिये पर । आसमान में तारे उग आए थे जिसकी वजह से अँधेरे का साम्राज्य थोड़ा हल्का हो गया था । खटिये पर लेटकर ऊपर आसमान में तारों को निहारना उसे काफी सुकून दे रहा था । ऐसा आनंद जो उसने अपने बंगले में मखमली गद्दों पर सोकर भी अनुभव नहीं किया था ।
लगभग एक घंटे बाद मास्टर आते हुए नजर आये । नजदीक आते ही उनके चेहरे के भाव देखकर गोपाल का कलेजा जोरों से धड़क उठा ।
निराश और हताश मास्टर आकर पहले से ही बिछी खटिये पर बैठ गए । काफी थके हुए से नजर आ रहे थे मास्टर रामकिशुन ! गोपाल संयम न रख सका और पूछ बैठा ,” बाबूजी ! क्या बात है ? आप कुछ परेशान से लग रहे हैं ? तबियत तो ठीक है न आपकी ? ”
” तबियत तो मेरी ठीक है बेटा लेकिन जो पंडित ने बताया वह ठीक नहीं है ! ” कहते हुए मास्टर ने गहरी सांस ली थी ।
” क्या बताया पंडित जी ने बाबूजी ? ” पूछते हुए गोपाल की अधीरता साफ़ झलक रही थी ।
” उन्होंने बताया तुम्हारी और साधना की शादी नहीं हो सकती । गणना सही नहीं बैठ रहा । अगर यह शादी हो गई तो तुम दोनों पूरी जिंदगी परेशान रहोगे ! ” कहते हुए मास्टर ने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया था ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।