शिव स्तुति
हे महादेव हे शिवशंकर, हे आशुतोष हे गिरिवासी ।
हे जगद्नियंता जगपालक, हम हैं अबोध अनुचर दासी ।।
मद मत्सर माया मोह हमें, अपने फेरे में उलझाये ।
इस अन्तहीन से अंधकूप में, समझ नहीं कुछ भी आये ।।
सकल लोक आलोक चराचर, संचालित होते हरि कर से ।
जीव जन्तु देवासुर किन्नर, माया प्रेरित हैं हरिहर से ।।
निज कर्मों का करके अर्पण, बाबा के द्वारे हम आए ।
ठुकराओ चाहे अपनाओ, अवध आप से आस लगाए ।।
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(भगवान शिवशंकर पर आधारित कुंडलिया)
बाबा भोलेनाथ की, महिमा अपरम्पार ।
आशुतोष बनकर किये, सदा जगत उद्धार ।।
सदा जगत उद्धार करें शिव औघड़ दानी ।
मन वांछित परिणाम दिलाते हर बर्फानी ।।
बेलपत्र के साथ, भंग के गोले, बाबा ।
सुन लो अवध पुकार, हमारे भोले बाबा ।।
— डॉ. अवधेश कुमार ‘अवध’