कविता

फिर सदाबहार काव्यालय-21

लबों पर हो खुशियों की लाली

आज हम अटैंड करने गए
एक लेखक सेमीनार
हमने जाने के लिए हायर की
एक अदद टैक्सी कार
रस्ते में मिला झुंड बंदरों का
वे कर रहे थे रस्ता पार
मुझे लगा कि शायद बंदर भी जा रहे हैं
अटैंड करने कोई सेमीनार
वैसे भी उनका तो रोज़ ही चलता है
किसी विषय पर सोच-विचार
उनमें से किसी को भी कुछ खाने को मिले तो
एक-दूसरे को बुलाकर कहते हैं
आजा-आजा तू भी कुछ खाले यार
फिर चलती है चुटकुलों की बयार
सुनाए जाते हैं
नए-पुराने चटपटे समाचार
मनुष्यों के अत्याचार और भ्रष्टाचार के किस्से
अंत में कूल होने के लिए
हंसी-ठठ्ठों की बहार.

वापिस आते समय
मैट्रो की बिजली की तार पर ढेरों कबूतर बैठे थे
बैठने को इतनी लम्बी जगह पाकर ऐंठे थे
वे भी शायद डिस्कस कर रहे थे
मनुष्यों का स्वार्थी व्यवहार
वे तो सुबह-सुबह सबको बुलाते थे
पाकर खाने के दानों का
थोड़ा-सा उपहार.

घर आए तो सुबह चाय बनाते हुए
स्लैब पर गिर गया था
चीनी का एक दाना
एक दाने को खाने के लिए लगा था
बहुत सारी चींटियों का आना-जाना
सबने एक-दूसरे को बताया था कि
चलो-चलो, मिल गया है
बहुत दिनों के बाद
चीनी का एक दाना
आज तो जी भरकर खा लो
फिर पता नहीं कब मिलेगा
इस तरह का मीठा खाना.

मैंने सोचा
कि
बंदरों, कबूतरों और चींटियों में
रह सकती है इतनी एकता
तो
अनेकता में एकता के गीत गाने वाले
मनुष्यों की कहां गई एकता
निःस्वार्थता की जगह
स्वार्थ का क्यों मिलता है पता!
काश उनका स्वार्थ हो जाए समाप्त
जीवन में आ जाए खुशहाली
सबके मन में हो आनंद की झनकार
लबों पर हो खुशियों की लाली,
लबों पर हो खुशियों की लाली,
लबों पर हो खुशियों की लाली.

लीला तिवानी

मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.

मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.

मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

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tewani30@yahoo.co.in

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “फिर सदाबहार काव्यालय-21

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    union is strenghth is the right fraze of this kavalya lila bahan .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. इन जानवरों से इंसान को बड़ी सीख मिलती है. काश इंसान भी एकता सीख लें और संसार स्वर्ग बन जाए. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    लगभग पच्चीस साल पहले मैं एक लेखक सेमीनार अटैंड करने गई थी. सेमीनार में मैं कुछ सी पाई या सिखा पाई, पता नहीं, इतना अवश्य है कि अगले सेमीनार के लिए और स्कूल में एकता का सबक सिखाने के लिए एक प्रस्तुतनीय कविता ने अवश्य जन्म ले लिया था, जो आज भी प्रासंगिक लग रही है. अनेक अवसरों पर यह कविता धूम मचाने के साथ एकता का संदेश देने में भी समर्थ हुई है. आपके विचार तो अब पता लगेंगे.

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