कविता

अभिनंदन है अभिनंदन को देश आपकी बोले जय

अरि के सन्मुख खड़ा रहा, जो सीना ताने हो निर्भय,
*अभिनंदन* है *अभिनंदन* को, देश आपकी बोले जय।
जान गया है विश्व आज अब, लहू रगों में तूफानी है,
इसी लिए तो हर-हर, बम-बम बोल रहे सब जय ही जय।।

बनकर सीमा का प्रहरी *अभिनंदन* सदा रहा चौकन्ना,
उन्नत रहे शीश अपना, लिए ह्रदय में यही तमन्ना।
सुविधाओं से लैस पाक की इक टुकड़ी को खेद लिया,
मार गिराया उस विमान को जो सक्षम था दस गुना।।

चौंक गयी सारी दुनिया शौर्य देख अभिनंदन का,
बाल ना बांका हो पाया वीर प्रसूता नंदन का।
अचल रहा पाक जमीं पर, सीना ताने रहा खड़ा,
इसी लिए तो गूँज रहा है गीत हिन्द में वंदन का।।

मक्कारों की मक्कारी ने, इक पल उसे फंसाया था,
हिन्द जमीं बतलाकर के पाकी ने जाल बिछाया था।
हुंकारा जब सिंह सरीखा, “वंदेमातरम्” घोष किया,
असली चेहरा सामने आया छली ने जिसे छिपाया था।।

जान गया वह नहीं हिन्द में, स्यालों ने है घेर लिया,
दिल में धारण किया तिरंगा, क्रोध से मुट्ठी भींच लिया।
सहसा उसको ध्यान हुआ कि पेपर पास जरुरी है,
घायल पीठ लिये वह दौड़ा, पास सरोवर कूद लिया।।

एक-एक को फाड़-फाड़ कर चबा-चबा कर लील लिया,
बाकी को जल में मिलाकर, मसल-मसलकर लीद किया।
अरि समक्ष अड़ा रहा, वह डरा नहीं, अदम्य साहस लिए हुये,
आँख मिलाकर देखा तुमने, जिसने तुम्हे जलील किया।।

जान गया था पाक भयानक मंजर आने वाला है,
शांति कबूतर नहीं हिन्द से खंजर आने वाला है।
जिसका एक अकेला सैनिक निडर खड़ा है उसके पास,
उस हिन्द की सेना आने से अब क्रंदन आने वाला है।।

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।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं