पर्यावरण

गौरैयों के विलुप्ति के कारण और उसका समाधान

(विश्व गौरैया दिवस -20 मार्च )

“गौरैया संरक्षण” से आम लोगों में गौरैयों के प्रति ममत्व के बारे में जागरूक करना बहुत जरूरी है। एक व्यक्ति कितने घोसले बना सकता है ? यही कोई 500 या 1000 तक , मान लिया जाय कि इस देश की आबादी सवा अरब है , इसमें से 1 प्रतिशत आदमी भी साथ दें , वे लोग गौरैयों को बचाने की ठान लें तो , कई लाखों-करोड़ों में विभिन्न स्थानों पर घोसले और उनके लिए सुविधायें उपलब्ध हो जायेंगी । यह बहुत बड़ी बात होगी । मैं अब तक अपने घर पर गौरैयों के लिये लगभग 550 घोसले बना चुका हूँ ,उनके बैठने ,आराम करने और गुफ्तगू करने के लिए 5 सूखे पेड़ की डालियों को लोहे के तार से बाँधकर पाँच कृत्रिम पेड़, पानी पीने के लिए 10 मिट्टी और प्लास्टिक के बर्तन व उन्हें व उनके बच्चों को इनके सबसे भयंकरतम् शिकारी ब़ाज से बचाने के लिए मिट्टी की सैकड़ों गोलियां और गुलेल रखा हूँ । प्रतिदिन सुबह शाम उनके लिए नियमित रूप से जाड़े में बाजरे के दाने और आम दिनों में चावल के टुकड़े और रोटी के टुकड़े अपनी छत पर बिखेर देता हूँ ।  आपको जानकर अत्यन्त प्रसन्नता होगी कि पिछले वर्ष लगभग 150 गौरैयों के नन्हें-मुन्ने बच्चे मेरे यहाँ पैदा हुये थे।
      गौरैया बाजरे के खेतों में झुंड की झुंड पुराने समय से ही अपनी मनपसंद बाजरा खाती रहती थीं , पहले लोग टिन या कनस्तर वगैरह पीटकर उससे ही शोर-गुल मचाकर या गुलेल का प्रयोग कर उन्हें भगा देते थे ,परन्तु आज का आधुनिक किसान उन बाजरे की बालियों पर ही कीटनाशकों का छिड़काव कर देता है ,इसके परिणाम से आप खुद ही अन्दाजा लगा लिजिए ,कहाँ रहेगीं गौरैया ? मनुष्य ने उनका बसेरा छीन लिया, मोबाईल रेडियेशन से उनका उन्मुक्त गगन में उड़ना छीन लिया , खाने में जहर मिला दिया ,नदियों ,तालाबों का पानी मानव द्वारा इतना प्रदूषित और जहरीला कर दिया गया कि गौरैयों सहित कोई भी पशुपक्षी उसे पी ही नहीं सकता ,कल्पना करें मानव जो गौरैयों से 2500 गुना भारी और बड़ा है अगर उस पर इतना प्रतिबंध लगा दिया जाय मसलन उसे घर से भगा दिया जाय उसके खाने पीने में जहर मिला दिया जाय और उसे घूमने ,किसी से मिलने पर प्रतिबंध लगा दिया जाय ,तो उस स्थिति में स्वयं मनुष्य कितने दिन अपने अस्तित्व को बचाकर रख सकता है ?  आज की सरकारें तथाकथित “गौरैया दिवस”मनाकर करोड़ों रूपये का बँटाधार कर रहीं हैं , ठोस काम नहीं होता और “गौरैया के लौट”आने का इन्तजार कर रहीं है ।  इसका समाधान यह है कि – (1) सभी लोग घर बनाते समय गौरैयों के लिये कुछ ऐसा स्थान गौरैयों के लिये बनायें जहाँ वह निश्चिंत होकर घोसला बनाये (मेरे विचार से सबसे बढ़िया जगह आपके घर के छज्जे के ठीक नीचे है ,जहाँ वह अपने दुश्मनों जैसे बिल्ली, साँप आदि से भी सुरक्षित रहेगी और बारिस तूफान आदि से भी । अगर यह संभव न हो तो वहीं गत्ते ,लकड़ी या कोई भी घोसले बनाने लायक  डिब्बों को घोसले का रूप देकर टांगा जा सकता है ,जो मैं स्वयं बहुत सफलतापूर्वक कर रहा हूँ। (2)खेतों में कीटनाशकों का जहां तक हो सके कम प्रयोग हो ,अगर हो भी तो फसलों की बालियों पर न हो । (3) मोबाईल टावर जितना हो सके बस्ती से दूरस्थ स्थानों पर बनाये जाँय , ताकि मानव बस्ती में बनाये घोसले में गौरैया निरापद ढंग से अपनी वंश वृद्धि कर सके । (4) सभी लोग साफ मिट्टी के बर्तन में प्रतिदिन छत पर या किसी खुले स्थान पर पानी जरूर रखें ताकि वे कुछ वर्षों पूर्व लातूर (महाराष्ट्र ) की तरह पानी के अभाव में दम ना तोड़ें । (5) प्रतिदिन खुले स्थान पर घर की बची एक -दो रोटियों को बारीक तोड़कर या बाजरे को बिखेर दें।
      उक्त कुछ कार्यों से निश्चित रूप से गौरैयों के लिए बहुत सकारात्मक परिणाम सामने आयेेेगा ।
 — निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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