राजनीति

चुनाव घोषित होते ही मुस्लिमपरस्त राजनीति का चेहरा बेनकाब

आगामी लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के साथ देशभर के तमाम राजनैतिक दलों से लम्बी चर्चायें करने के बाद अंततः चुनाव तारीखों का ऐलान कर दिया है और इसके साथ ही अगली सरकार चुनने के लिए अब राजनैतिक गहमागहमी खूब जोरों से शुरू हो गयी है। चुनाव आयोग सभी लोगों के साथ लम्बे विचार विमर्श के बाद चुनावों की तारीखों का ऐलान करता है। इस बार भी वही हुआ है। लेकिन भारत के बयान बहादुर राजनेता और राजनैतिक दलों ने चुनावों की तारीखों को लेकर जिस प्रकार मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने के लिए रमजान के कारण मतदान की तारीखें बदलने की मांग कर डाली है वह काफी हैरतअंगेज व शर्मनाक है। ऐसा प्रतीत होता है कि राजनैतिक दलों ने विभिन्न पंचांगों में की गयी भविष्यवाणियों व एयरस्ट्राइक के बाद जो चुनावी सर्वे आ रहे हैं उनसे घबराकर यह मांग कर डाली है और अपनी फजीहत करवाने के साथ अब उनके पास कोई भी मुद्दा नहीं रह गया है जिसके आधार पर वे बीजेपी को हरा सकें। इसलिए ऐसे बयान जारी किये जा रहे हैं।
यदि लोकसभा चुनावों के आरम्भिक दिनों में देखा जाये तो यह साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला एनडीए तैयार हो चुका है, जबकि मुस्लिम तुष्टीकरण व पाकिस्तानी पे्रम में बुरी तरह पागल महाविलावटी ग्रुप अभी तक केवल कागजों व बयानों में ही सिमटा रह गया है। महाविलावटी ग्रुप किसी न किसी प्रकार से साजिशें रचना चाह रहा है। उसे किसी भी संस्था पर कतई विश्वास नहीं रह गया है। अगर अभी कहीें किसी कारणवश या फिर मान लीजिये सीमा पर भारत-पाक तनाव के कारण ही चुनावों को टाल दिया जाता या फिर टल जाते, तो फिर यही दल एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार और चुनाव आयोग पर एक से बढ़कर एक गंभीर आरोप ही लगाते तथा कहते-फिरते कि देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं को मोदी सरकार ने बर्बाद कर दिया है।
मुस्लिम तुष्टीकरण में पूरी तरह अंधे हो चुके सभी राजनैतिक दलों को कडा सबक सिखाने के लिए हिंदू जनमानस को यह एक बहुत बड़ा हथियार हाथ लग गया है तथा हिंदू जनमानस को एकजुट होकर मतदान करना चाहिए और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों पर और भी अधिक मतदान की स्ट्राइक करके जवाब देना चाहिए, ताकि ये सिरफिरे राजनैतिक दल फिर कभी इस प्रकार की आवाजें उठाने के काबिल ही न रह जायें।
विपक्षी दलों ने चुनाव की तारीखों पर बहुत ही सोच समझकर एक रणनीति के ही तहत सवाल खड़े किये हैं जिस पर चुनाव आयोग ने सख्ती के साथ अपना रूख भी स्पष्ट कर दिया है। देखा जाये तो चुनाव प्रक्रिया के बीच में ही होली, नवरात्र है तथा कई प्रकार परीक्षाओं का भी मौसम होगा। चुनावों के ही दौरान उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य सहित अधिकांश उत्तर भारत में हिंदुओं में वैवाहिक कार्यक्रमों का भी तूफानी दौर शुरू हो जायेगा। किसी हिंदूवादी संगठन व अन्य किसी नेता ने 110 करोड़ की आबादी वाले हिंदू जनमानस के होने वाले विभिन्न आयोजनों का उल्लेख क्यों नहीं किया? क्या वह इस देश का मतदाता ही नहीं है? रमजान के पवित्र माह की आड़ में इन सभी दलों ने जिस प्रकार से चुनावों की तारीखों पर प्रश्नचिन्ह लगाया है यह बहुत ही आपत्तिजनक है तथा यह इस बात का प्रबल संकेत है कि आने वाले दिनों में ये दल किस प्रकार चुनाव आयोग को धमकाने का तथा निष्पक्ष चुनाव न हो सके इसलिए रोज नये टकराव वाले बेसिरपैर के मुद्दे उठाते रहेंगे।
आम आदमी पार्टी के बगावती नेता योगेंद्र यादव जिनको अब कोई कहीं नहीं पूछ रहा है ने ही सबसे पहले चुनावों की तारीखों का विश्लेषण कर डाला। उनकी भाषा शैली बहुत ही विकृत तथा आपत्तिजनक हैं। संजय सिंह कहते हैं कि क्या मोदी जी ने अपने चुनाव प्रचार की तारीखें चुनाव आयोग को भेजीं और चुनाव आयोग ने उनके हिसाब से चुनाव की तारीखें घोषित कीं? कभी सुना है बंगाल में सात फेज में चुनाव? तो वहीं टीएमसी ने भी रमजान में मतदान को लेकर सवाल खड़े किये हैं? इन बयानों से साफ पता चलता है कि ये सभी लोग लोकसभा चुनावों में जनहित व राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना चाहते हैं।
इन दलों की शह पाकर ही लखनऊ के मौलाना फिरंगीमहली ने भी अपना बयान जारी किया है जो बेहद आपत्तिजनक है तथा जिस पर धर्म के आधार पर कार्यवाही भी की जा सकती है। उनका कहना है कि मुस्लिम समाज से पूछकर ही चुनाव आयोग को अपना कार्यक्रम घोषित करना चाहिए था। मौलाना फिरंगीमहली को यह ध्यान रखना चाहिए कि देश की सभी संवैधानिक संस्थाएं पूरी तरह स्वतंत्र हैं। जब चुनाव आयोग चुनावों की तारीखों का ऐलान करने से पहले जब सभी के साथ विचार-विमर्श कर रहा था तब आप लोग कहाँ थे? यह देश व इसकी संस्थाएं पूरी तरह आजाद भारत की या न्यू इंडिया की संस्थाएं हैं। ये संस्थाएं किसी एक विशेष विचारधारा या राजनैतिक दलों की गुलाम नहीं हैं। देश के सभी राजनैतिक दलों के नेताओं को अपनी हैसियत में ही रहना चाहिए। इन लोगों को जिन्होंने चुनाव आयोग की तारीखों पर सवाल खड़े किये हैं उनको अपना इतिहास अच्छी तरह से याद रखना चाहिए कि ये दल किस प्रकार चुनावों को मैनेज व प्रभावित करते रहे हैं।
योगेंद्र यादव व आम आदमी पार्टी के नेताओं को आज बंगाल की बड़ी चिंता हो रही है कि वहां पर सात चरणों में चुनाव क्यों हो रहे हैं? वह इसलिए कराये जा रहे हैं कि बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथी दलों के गंुडे अपनी करतूतों से बंगाल को लहुलूहान न कर सकें और चुनाव प्रक्रिया शांतिपूर्ण व निष्पक्ष संपन्न हो सके। ये लोग पूरे देश में चुनावों के दौरान बंगाल व केरल जैसी अराजकता का नंगा नाच पूरे भारत में देखना चाहते है। इस प्रकार की मांगें करने वाले दलों से केंद्र सरकार, चुनाव आयोग व चुनाव की प्रक्रिया में शामिल सभी एजेंसियों को सतर्क हो जाना चाहिए। यह मांग चुनाव टलवाने की एक बहुत बड़ी व गहरी साजिश के रूप में नजर आ रही है।
अब भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी दलों सहित राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ तथा सभी हिंदू संगठनों को भी बेहद सतर्क रहना होगा। जिस प्रकार से चुनाव आयोग ने इन लोगों की मांग को खारिज कर दिया है, अब यही लोग किसी तरह से चुनाव टलवाने के लिए किसी छोटी-सी भी वारदात को अंजाम देकर दंगे तक करवा सकते हैं। चुनावों के दौरान समस्त हिंदू जनमानस को बहुत ही अधिक सतर्क व जागरूक रहकर मतदान करने की आवश्यकता है। रमजान की आड़ में चुनाव टलवाने की मांग धार्मिक आधार पर की गयी मांग है।
चुनाव आयोग पूरी तरह से स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है और इन सभी महाविलावटी दलों ने देश की संस्थाओं को खूब धमकाने व उनको फुटबाल की तरह उपयोग करने का असफल प्रयास किया है। अब इनको सजा देने का समय आ गया है। कांग्रेस व विपक्ष की मांग पूरी तरह से धर्म पर आधारित है तथा चुनाव आयोग को यह विषय स्वतः संज्ञान में लेना चाहिए। रही बात ममता बनर्जी की सात चरणों में चुनाव कराने का विरोध करने की तो उन्हें पहले अपने बंगाल की राजनीति का पूरा इतिहास पढ़ना चाहिए क्योंकि बंगाल में पहले भी पांच चरणों में चुनाव हो चुके है। ममता अपनी राजनीति चमकाने के लिए देश की जनता की आंखों में धूल झोंक रही हैं।
— मृत्युंजय दीक्षित