गीत/नवगीत

गीत- अपना हित रह जाता है

औरों का हित करते-करते अपना हित रह जाता है.
धीरे-धीरे बचा-खुचा जल अँजुरी से बह जाता है.

जिसको अधिक चाहता कोई
उससे छूट वही जाता है.
जिस रिश्ते को बहुत सहेजें
इक दिन टूट वही जाता है.
पक्का बँगला तो बन जाता, कच्चा घर ढह जाता है.
औरों का हित करते-करते अपना हित रह जाता है.

जो कर्तव्य समझ हम करते
लोग उसे अधिकार समझते.
मौन अगर हम रह जाते हैं
लोग हमारी हार समझते.
संस्कार से बँधा हुआ मन कितना कुछ सह जाता है.
औरों का हित करते-करते अपना हित रह जाता है.

नदियाँ हमको जल देती हैं
उनको दूषित नहीं बनाना.
और पेड़ फल देते हमको
उन पर पत्थर नहीं चलाना.
जाते-जाते बच्चों से क्या कोई यह कह जाता है?
औरों का हित करते-करते अपना हित रह जाता है.

डॉ कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674