कविता

दिलखुश जुगलबंदी- 10

मौज बढ़ाए मन की

दिलखुश जुगलबंदी का पौधा खिलने लगा है
अब उसमें रविंदर सूदन जैसा सुन्दर पुष्प खिलने लगा है
दिल को खुश करने का आलम यह है
कि सबको दिलखुश जुगलबंदी का मजा आने लगा है.

दिलखुश जुगलबंदी के पौधे ने सुंदर पुष्प खिलाए हैं
इस पुष्प की महक लेने बहुत-से महानुभाव आए हैं
जब कभी दिलखुश जुगलबंदी का इतिहास खोजा जाएगा
सभी कहेंगे कि इस दिलखुश जुगलबंदी के बीज सुदर्शन खन्ना ने पनपाए हैं.

दीदी, जुगलबंदी के बीज पनपने के बाद का मंजर देखिए
आपके ज्ञान और उत्साह रूपी खाद से विकसित हो रहे हैं
इस बात को भला कैसे भुलाया जाएगा
यह भी इतिहास में लिखा जाएगा.

जुगल बंदी के आविष्कर्त्ता को बहुत बहुत सलाम
यह सच्चाई है, नहीं कोई कलाम
राइट बन्धुओं ने वायुयान बनाकर सबको देश विदेश घुमाया
एडिसन ने बल्ब बनाकर सबके घरों को चमकाया
डनलप ने टायर बनाकर जिंदगी को आसान बनाया
फ़ोर्ड ने कार बनाकर जिंदगी का मजा चखाया
पास्कल ने केलकुलेटर बनाकर गणित को उंगलियों पर गिनाया
चार्ल्स बेबेज ने कंप्यूटर बनाकर
देश विदेश को एक बनाया
हमें आप से मिलवाया,
लूमिएरर ने सिनेमा से मनोरंजन करवाया
मारकोनी ने रेडियो बनाकर जीवन में संगीत सुनाया
ऐसे ही सुदर्शन खन्ना ने जुगलबंदी शुरु करके
एक दूसरे से जुड़ने का अंदाज सिखाया.

ये खुशी और जो ये नया अंदाज है
समझने वाले समझ गये इसमें जो राज है
न समझने वाले कभी नहीं समझेंगे
जो समझ गए, उनके सिर पर ताज है.

इस राज में किसी का कमाल है
किसी के जोश का धमाल है
हम तो बस एडिटर की भूमिका में हैं
थोड़ा-सा मिलाते सुर और ताल हैं.

आपका थोड़ा सा सुर और ताल,
करता है बहुत बड़ा कमाल
चटनी के बिना पकोड़ों का क्या हाल,
एडिटर भूमिका न निभाए
तो संगत में न रहेगी रंगत, न होगा धमाल!

यह संगत में रंगत की बात खूब कही,
चटनी के बिना पकोड़ों की बात खूब कही,
हमें याद आ गई अपनी बहुत पुरानी कहानी ”सूनी-सूनी टिकिया”,
चटनी के बिना आलू की टिकिया का स्वाद भी नहीं लगता सही.

लाई हरियाली वो तीखी चटनी
लाल चुनरी ओढ़े मीठी चटनी
पीले पकौड़ों संग सज रही हैं
रंग फिज़ा में घोल रही हैं
जुगलबंदी इक महफिल प्यारी
आने वाली है होली न्यारी
आओ मिल कर करें तैयारी

होली की तैयारी में भूल न जाना पेड़ों को
हवन करने होली में काट न डालना पेड़ों को
इनकी टूटी डालों से तुम काम अपना चला लेना
भले ही बेकार फर्नीचर को तुम उसमें जला देना
सबसे अच्छा है गोबर के कंडों से काम चलाना
लकड़ी को हर हाल में बचाना
वैर-कलुष को भले ही खूब जलाना
प्रेम से सब को गले लगाना
भावना रखना वसुधैव कुटुंबकम की
यही सद्भावना मौज बढ़ाए मन की.

दिलखुश जुगलबंदी-6 के कामेंट्स में सुदर्शन खन्ना, रविंदर सूदन और लीला तिवानी की काव्यमय चैट पर आधारित दिलखुश जुगलबंदी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दिलखुश जुगलबंदी- 10

  • लीला तिवानी

    प्रेरणा की खूबसूरती देखिए, सुदर्शन भाई ने लिखा-
    ”दिलखुश जुगलबंदी का पौधा खिलने लगा है
    अब उसमें रविंदर सूदन जैसा सुन्दर पुष्प खिलने लगा है”
    रविंदर भाई का उत्साह बढ़ा और उन्होंने आविष्कारकर्त्ताओं की जानकारी की झड़ी लगा दी-

    जुगल बंदी के आविष्कर्त्ता को बहुत बहुत सलाम
    यह सच्चाई है, नहीं कोई कलाम
    राइट बन्धुओं ने वायुयान बनाकर सबको देश विदेश घुमाया
    एडिसन ने बल्ब बनाकर सबके घरों को चमकाया
    डनलप ने टायर बनाकर जिंदगी को आसान बनाया
    फ़ोर्ड ने कार बनाकर जिंदगी का मजा चखाया
    पास्कल ने केलकुलेटर बनाकर गणित को उंगलियों पर गिनाया
    चार्ल्स बेबेज ने कंप्यूटर बनाकर
    देश विदेश को एक बनाया
    हमें आप से मिलवाया,
    लूमिएरर ने सिनेमा से मनोरंजन करवाया
    मारकोनी ने रेडियो बनाकर जीवन में संगीत सुनाया
    ऐसे ही सुदर्शन खन्ना ने जुगलबंदी शुरु करके
    एक दूसरे से जुड़ने का अंदाज सिखाया.

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