कविता

उम्मीद

इतने लोगो की भीड़ है हर तरफ,
पर दिखता कोई अपना नही है ,
उम्मीदे फिर भी करता सबसे,
वो इंसान अब तक हारा नहीं है।

है जीवन पूरा -सपनो से भरा,
और सपना कोई पूरा होता नहीं,
सपने देखना छोड़ता नही कभी,
वो इंसान अब तक हारा नही है।

कुछ तो है छिपा कोहरे की चादर में,
छोटे – छोटे पत्तो की कोई चाहत ही है ये,
आखिर पत्ते जो भीगे है औस की बूंदों से,
उन का चेहरा यूँ ही तो खिला सा नही है,

चंद औस की बूंद से चमक उठती पत्तियां,
उन्हें बारिश की बूंदों की ख्वाहिश नही है,
तारो को चमकने को बहुत कम जगह चाहिए,
उन्हें पूरे आसमाँ की कोई जरूरत नही है,

सुबह से स्याम तक जाने कहाँ उड़ता फिरता है,
वो परिंदा आसमाँ को अपना समझता है,
परिंदे को तलाश घर के लिए चंद तिनको
की है,पूरे आसमाँ से उसका वास्ता क्या है।

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- neerajtya@yahoo.in एवं neerajtyagi262@gmail.com ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)