धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

भगोरिया पर्व : लोक गीत, संगीत, नृत्य और प्रकृति का सौंदर्य

भगोरिया पर्व मध्यप्रदेश के धार,झाबुआ ,आलीराजपुर ,खरगोन आदि के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में नृत्य ,संगीत ,लोक गायन ,एक जैसे ड्रेस कोड वाले सुन्दर परिधान,चांदी के सुन्दर पहनावे के साथ धूमधाम से मनाया जाता है | भगोरिया पर लगने वाले हाट -बाजार मेले का रूप ले लेते है | मेले में अपनी जरुरत की वस्तुएं खरीदते है |भगोरिया प्रारम्भ समीप शिव मंदिर से किया जाता है | जिलों में भगोरिया की तारीख पहले तय की जाती है | होली जलने के लगभग एक सप्ताह पूर्व से मनाया जाता है | भगोरिया के पश्चात पड़ने वाले हाट -बाजार को उजाड़िया बाजार भी कहा जाता है |बांसुरी,घुंघरू,मांदल बहुत बड़े आकर का ढोल,थाली,छतरी,रुमाल आदि को लेकर नृत्यकिया जाता है |फागुन मौसम छटा बिखेरकर पर्व को आकर्षक बनाता है |भगोरिया पर्व नजदीक आने को है |भगोरिया पर्व आते ही वासन्तिक छटा मन को मोह लेती है वही इस पर्व की पूर्व तैयारी करने से ढोल ,बांसुरी की धुनों की मिठास पूर्व से ही कानों मे मिश्री घोल देती है व उमंगो में एक नई ऊर्जा भरती है| दूरस्थ गाँव के रहने वाले समीप भरे जाने वाले हाट (विशेष कर पूर्व से निर्धारित लगने वाले भगोरिया) मे सज-धज के जाते है |युवक-युवतिया झुंड बनाकर पैदल भी जाते है |ताड़ी के पेड़ पर लटकी मटकिया जिसमे ताड़ी एकत्रित की जाती है| ताड़ी के वृक्षों पर बेहद खुबसूरत नजर आती है |खजूर ,आम आदि के हरे -भरे पेड़ ऐसे लगते है |मानों ये भगोरिया मे जाने वालो का अभिवादन कर रहे हो ,फागुन माह में आम के वृक्षों पर नए मोर और पहाड़ो पर खिले टेसू का ऐसा सुन्दर नजारा होता है मानों प्रकृति ने अपना अनमोल खजाना खोल दिया हो देश ही नहीं अपितु विदेशों से भी इस पर्व को देखने विदेशी लोग कई क्षेत्रों में आते है| लोक संस्कृति के पारम्परिक लोक गीतों को गाया जाकर माहौल मे एक लोक संस्कृति का बेहतर वातावरण देखने को मिलता है|साथ ही प्रकृति और संस्कृति का संगम हरे -भरे पेड़ो से निखर जाता है |कई क्षेत्रों में जंगलो के कम होने से व गाँवों के विस्तृत होने से कई क्षेत्रो मे कम्पौंड के अन्दर ही नृत्य कर भगोरिया पर्व मनाया जाने लगा है । भगोरिया उत्सव के दौरान लोक संगीत हेतु बड़े आकार का विशेष प्रकार का ढोल नृत्य घेरे के मध्य खड़े होकर लोक संगीत बजाया जाता है |लोक संगीत हेतु बड़े आकार का विशेष प्रकार का ढोल नृत्य घेरे के मध्य खड़े होकर लोक संगीत बजाया जाता है | इसके संगीत में चुंबकीय आकर्षण होता है |इसके एक तरफ आटा लगा के बजाया जााता।लोक संगीत से जुड़े बड़े आकार के वाद्य यंत्रों का महत्व आज तक बरक़रार है | इन वाद्य यंत्रो से निकले लोक संगीत के आनंद की बात ही कुछ और है|इसके संगीत में चुंबकीय आकर्षण होता है | इस ढोल की प्रेक्टिस व तैयारी एक माह पूर्व से की जाती है | लोक संगीत ,लोक गीतों लोक नृत्य, लोक गायन,लोक कला कृति आदि के उपासकों द्धारा इन्हें संजोए रखने का कार्य प्रशंसनीय तो है ही साथी भावी पीढ़ी को इनकी विशेषता से परिचित भी करवाता है |भगोरिया नृत्य टीम को सम्मानित किया जाता है ।देहली में राष्ट्रीय पर्व पर भगोरिया पर्व की झांकी भी निकाली जाती है ।झाबुआ /आलीराजपुर /धार /खरगोन ,आदि जिलों के गांवों के निर्धारित की जाने वाले दिनांक को लगने वाले क्षेत्रीय हाट- बाजारों में भगोरिया पर्व को बेहतर तरीके से लोक गीतों पारम्परिक वाद्य यंत्रों के संगीत के साथ एवं लोकनृत्य से अपनी लोक संस्कृति को विलुप्त होने से बचाते आरहे है ।इसका हम सभी को गर्व है ।

— संजय वर्मा ‘दृष्टी ‘
125 शहीद भगतसिंग मार्ग
मनावर जिला धार

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /antriksh.sanjay@gmail.com 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच