कविता

होली है… होली है…

बीत गया सर्दी का मौसम ,बीत रहा सुहाना बसंत
फाल्गुन की खुशियां छाई हैं संग लेकर होली के रंग.
प्रीत भरा होली का उत्सव, इंद्रधनुष सी छाई बहार
कहीं गुलाल से सजे गाल, कहीं रंग की पिचकारी फुहार,

कहीं नटखट बच्चो की टोली , हुड़दंग मचा खेलें होली,
बाँहों में भरकर गले लगा , सब बोल रहे मीठी बोली,
न कोई गिला न कोई शिक़वा, बस होली है बस होली है
खूब मस्ती में यारों की टोली, बस होलो है बस होली है ,

कहीं गुजिया कहीं मिठाई है ,कहीं पान गिलोरी की गोली,
कहीं गर्म जलेबी और भुजिया,कही बर्फी और कहीं रसगुल्ले
कहीं शरबत ,कहीं ठंडाई है , कुछ उड़ा गए भांग की गोली,
पर सबकी ज़ुबान पर एक नाम , बस होली है बस होली है

मस्ती का रंग छाया उन पर , वह अपने प्रियतम की हो ली
मल कर गुलाल प्रिय गलो पर, उन्हें बाहुपाश में बांध लिया –
फिर प्रियतम ने मारी पिचकारी ,भीगी उसकी अंगिया चोली,
पहले तो वह कुछ शरमाई , फिर झूम झूम के नाच उठी-
बस और मुझे कुछ याद नहीं, बस होली होली और होली,

— जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845