कविता

चुनावी मौसम

यूं तो मौसम चार होते हैं,
हर 5 साल बाद पांचवा मौसम आता है,
वह चुनाव का मौसम कहलाता है।
इस मौसम में हरियाली ज्यादा होती है,
सभी को दिव्यस्वप्न   दिखाई देते हैं।
नेता जो कल तक आसमान में बैठे थे,
वह इस मौसम में जमीन पर दिखाई देते हैं।
फिर नारों का  दौर चल पड़ता है,
झूठे वादों का दौर चल पड़ता है,
जनता की हर बात निराली लगती है,
जनता में भगवान दिखाई पड़ता है।
फिर भी मांगते हैं नेता,
भगवान दरस को जाते हैं,
जो पाप कर लिए 5 साल में,
वह उनको धो कर आते हैं।
हो जाती है गंगा मैली,
भगवान भी रूठ जाते हैं।
जब चुनाव का मौसम आता है,
हर तरफ हर बढ़ जाता है,
चुनाव का मौसम लगता बहुत प्यारा है।।
गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384