बाल कविता

बाल कविता – मुनिया की घड़ी

पापा अब मैं हुई बड़ी।
ला दो मुझको एक घड़ी।
बिलकुल भैया के जैसी।
न लूँगी ऐसी वैसी।
स्कूल पहन कर जाउंगी।
सब पर रौब जमाउंगी।

पापा जी बोले हँसकर।
कल ही देते हैं लाकर।
पर मुनिया एक बात सुनो।
समय देखना तो सीखो।
जब सही समय बतलाओगी।
तभी तो रौब जमाओगी।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा

One thought on “बाल कविता – मुनिया की घड़ी

  • समर नाथ मिश्र

    balman sahaj bhavabhivyakti

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