कविता

तितली बनू

तेरी राहों मे तितली
मैं बनकर चली
तेरी बाहों मे आहें
मैं भरकर सोई
तुझे अपने दिल की
आरमा बताने चली
तुझे यादों की कीमत
चुकाने चली
तेरी राहों मे तितली
मैं बनकर चली
हर सुबह याद आये
हमे ख्वाबों में
हम हाथों में हाथ
बढ़ा कर चलें
हर जनम साथ दू़गीं
ये वादा मेरा
तेरी राहों मे तितली
मैं बनकर चली
तु एक वीर पुरूष
मैं हूँ वीरंगना
तेरी साथी हूँ संगी
प्रिय बनकर रही
सात जन्मों का नाता
है वादा मेरा
तेरी राहों मे तितली
मैं बनकर चली!
विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।