कहानी

झुठलाते से एहसास

कल रात तुम आये थे! कितना असहज सी हो गयी थी, पल दो पल को ! जानती हूं जरूर कोई वजह रही होगी ! पूछुंगी तो कहोगे नही , इसलिए चुप रही ! एक कप चाय पी कर जाने को उठे तो छिपा नही सके चश्मे के पीछे छिपी बोझिल सी आँखों को ओर मैं उस एहसास को ढूढने में जो तुम्हे मुझ तक खींच लाया था  ! सुनो कह क्यो नही देते — ?
    ज्यो ही जाने को कदम बाहर की ओर बढ़े एकदम से बोल उठी — सुनो आज रात यही रुक जाओ ना , शायद तुम खुद भी रुकना चाहते थे इसलिए ठिठक गए ! मुड़ कर दो पल को आंखों में देखा और सीढियां चढ़ छत पर बिछी आराम कुर्सी पर पसर गए ! तुम्हारे पीछे पीछे मैं भी चली आई थी वही जीने की ड्योढ़ी पर बैठे तुम्हे एकटक देख रही थी ! इसका तुम्हे भान नही था शायद !
       आकाश की तरफ मुह कर तुम चाँद को देखते रहे फिर बेचैन हो सिगरेट जला कर ऊपर की तरफ धुँए के छल्ले बनाकर उड़ाते रहे !उदासी पसरी थी और तुम अजीब सी कशमकश में खुद से लड़ रहे थे ! अचानक से तुम्हे जैसे कुछ याद आया हो ! जेब से पर्स निकाल कर उसमें लगी फ़ोटो को देख कर दो आँसू तुम्हारे गाल पर लुढ़क आये ! और मैं तड़प उठी , इतना दर्द ? उफ़्फ़फ़
   तुमने फ़ोटो को होंठो से छुआ ओर देखते देखते उसके टुकड़े कर दिये ! कुछ समझ ना पाई ! आखिर क्या चल रहा था तुमहारे अंतर्मन में ! हल्का सा हिली तो चूड़ियां बज उठी और तुम्हे मेरे होने का एहसास हो गया ! तस्वीर के टुकड़ों को मुट्ठी में कस लिया कि कही में देख ना लू ! पलट कर  बोले — सुनो मुझे जाना होगा ! आता हूं कहकर तेज़ी से सीढियां उतरकर दरवाजा खोल चले गए ! ओर मैं निढाल सी खड़ी रह गयी!
     मन सयंत कर कुर्सी को छुआ तो झूठे से एहसास फिर से जाग गए ! लिपट गयी कुर्सी से ! क्यो ? आखिर क्यो तुम कुछ बोल नही पाए ! कौन सा दर्द था जिसे तुम पी रहे थे ! नीचे पड़े सिगरेट को मुह से लगा लिया उस बेचैनी को महसूस करने के लिए ! आंख बंद कर पड़ी रही छत की जमी पर !
खामोशी वक्त की चादर ओढ़ कर मुस्कुरा रही थी !!
नीचे आते हुए अचानक से नजर एक टुकड़े पर पड़ी शायद बन्द मुट्ठी से फिसल गया था ! जल्दी से उठा कर जैसे ही नजरे पड़ी पैर लड़खड़ा गए वो मेरी ही तस्वीर का टुकड़ा था ! उफ़्फ़फ़फ़ — क्यो नही कह पाए तुम ? कह तो मैं भी नही सकी थी ! दोनो ही एकदूसरे के एहसास में डूबे रहे और झुठलाते रहे ! ये क्या हो गया ! लेकिन तुम जा चुके थे कभी ना लौटकर आने के लिये ये उस पाती से पता चला जो तुम जाते हुए पायदान पर रख गए थे !
“सुनो,
मन वैरागी हो गया है अब , तुम्हे पाया नही तो खोया भी नही है ! जा रहा हू हमेशा के लिए इस एहसास के साथ कि तुम मेरी हो ! और हमेशा रहोगी , परछाई बनकर !!”
काश ! तुमने एक बार कहा होता तो मैं परछाई नही तुम्हारा हिस्सा होती !!
इश्क अधूरा ही रहा – अपने अक्षर की तरह!
डाॅली अग्रवाल

डॉली अग्रवाल

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