कविता

नया साल

 

बदल जाती होंगी ,नए साल में कैलेंडर के रंग और तहरीरें ।
बदल जाते होंगे घरों के आगे पड़े हुए कूड़े के भी दिन ।
बदल जाते होंगे दिलों में पनपते हुए नफरत के बीज ।
बदल जाते हैं ग्रहण के समय के पल और नक्षत्र ।
बदल जाते हैं लफ्जों के रहस्यमयी अर्थ के घेरे ।
फिर क्यों नहीं बदलती किसी के लिए दिल में बैठी हुई गलतफहमियां ।
फिर क्यों नही बदलती इंसानों में छिपी हुई शरारती आत्माएं ।
फिर क्यों नही बदलती मेरे तुम्हारे दिल के बीच की दूरियां ।
गर फुर्सत हो तो कभी बता देना जब कोई साथ न दे ।
गर फुरकत हो तो बता देना जब कोई हाथ न हो ।

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017