कविता

कब आओगे तुम

कब आओगे तुम

महफ़िल में बात हो रही है मोहब्बत की,
मेरे ज़हन में तुम आ गए हो ।

मोहब्ब्त की गर्म चर्चा में तुम ही तुम हो ,
बनके अश्रु आंखों में आये हो ।

आँसू बन तुम सबके सामने आते बाहर ,
मैं उनको छुपाए चली आई ।

मैं आ गई वहाँ पर जहाँ पर,
हुई मुलाकात हमारी अंतिम ।

वो कमरा बिल्कुल नहीं बदला मैंने,
वैसा ही है जैसा तुम छोड़ गए थे ।

आज भी तुम्हारी खुशबू महसूस करती हूं,
इस बन्द कमरे में मैं हमेशा ।

तुम्हारी बाहों में खुद को महफूज़ ,
समझती थी मैं , लेकिन …….

तुमसे हुई मोहब्ब्त बेपनाह मुझे,
तेरे साथ होने का अहसास दिलाती है ।

तेरी याद, तेरी बातों को याद करती हूं,
इनसे ही तुझे पास अपने पाती हूँ।

दूर मंदिर के दीये जैसे ही ,
उम्मीद का दीया जलता है मन में।

साथ जीना मरना था हमको ,
तुम बीच राह में छोड़ गए ।

जाओ इस जन्म में तुम,
धरती माँ का कर्ज चुकाओ ।

वादा करो तुम अगला जन्म ,
मेरे साथ ही रहोगे तुम ।

तुम्हारी मोहब्बतके सहारे,
ये जीवन जी लुंगी मैं ।

आंखों में जो आएंगे आंसू,
तेरी याद में तब……चुपके से पोंछ लुंगी ।

मेरी मोहब्ब्त को मैं ,
कमजोर नही होने दूँगी ।

तुम्हारे आने का इंतजार करूंगी,
अंतिम सांस तेरी बाहों में लुंगी ।

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।