उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग -52 )

ममता की परीक्षा ( भाग – 52 )

दोनों के बीच हो रही बातचीत से साधना खुद को असहज महसूस कर रही थी । उसे गोपाल की बातों को सुनकर बड़ा आश्चर्य व दुःख भी हो रहा था । गोपाल की बातों से वह कत्तई सहमत नहीं थी । उसका मानना था ‘ माँ चाहे जैसी भी है हर हाल में माँ होती है । माँ की अहमियत उससे बेहतर कौन समझेगा । माना कि बाबूजी ने उसका बहुत अच्छे से पालन पोषण किया ,उसे माँ की कमी महसूस न होने देने का भरपूर प्रयास किया । लेकिन एक लड़की होने के नाते उसे हर कदम पर माँ की कमी महसूस होती रही और साथ ही अपने बाबूजी पर गर्व भी । लेकिन यहाँ गोपाल तो अपनी माँ के लिए बिलकुल निर्दयी ही बना हुआ बैठा है । यह तो सरासर गलत है । और फिर क्या गलत किया था उसकी माँ ने ? यही तो चाहा था न कि गोपाल उनके पसंद की किसी लड़की से शादी कर ले । तो क्या गलत चाहा था उन्होंने ? हर माँ बाप की अपनी संतानों को लेकर एक ख्वाहिश होती है और अगर उसकी माँ ने ऐसी कोई ख्वाहिश जाहिर कर दी तो क्या यह उसकी इतनी बड़ी गलती मानी जायेगी कि उसके अस्वस्थ होने की खबर सुनकर भी उनकी तरफ से बेपरवाह रहा जाए ? नहीं ! ऐसा करना उस माँ की ममता को चोट पहुँचाने जैसा होगा जो अपने बेटे के गम में अस्वस्थ हो गई है । ‘
यह सब सोचते हुए साधना के चेहरे पर असीम वेदना उभर आई थी । जमनादास से अधीरता से पूछ बैठी ,” डॉक्टर्स क्या बोल रहे हैं जमना माँ जी के बारे में ? ठीक तो हो जाएंगी न वो ? ”
साधना की बातों को सुनकर अपनी योजना के फेल हो जाने से निराश जमना के मन में आशा की एक किरण सी चमकी और उसने हाथ आये मौके का फायदा उठाने में कोई गलती नहीं की । साधना से मुखातिब होते हुए बोला ,” साधना ! आंटी की तबियत खराब नहीं है जो डॉक्टर की दवाई से वो अच्छी हो जाएंगी । अरे उन्हें तो सदमा लगा है सदमा ! अब तुम्हीं सोचो जिसका इकलौता बेटा गुस्से में अपना घर छोड़ जाये वो माँ कैसे जिन्दा रहेगी ? और इसका एक ही इलाज है कि गोपाल उनके सामने भला चंगा पहुँच जाय । और यहाँ ये महाशय हैं कि पता नहीं क्या क्या बके जा रहे हैं । अरे माँ बाप किसके नाराज नहीं होते ? लेकिन कोई इस कदर रूठता है क्या अपने माँ बाप से ? ऐसे भी कोई नाराज होता है क्या ? माँ की सेहत के बारे में जानकर भी जो दिल नहीं पसीजा वो दिल जरूर पत्थर का होगा ………! ” उसकी बातें सुनकर गोपाल अवश्य कुछ सोचने लगा था । तभी साधना उसकी बात काटकर बिच में ही बोल पड़ी ,” अरे नहीं ! ये आपके साथ जाएँगे और जरूर जाएँगे । ”
साधना की बात सुनते ही गोपाल चौंक पड़ा ,” ये तुम क्या कह रही हो साधना ? तुम्हें नहीं पता इसका अंजाम बहुत बुरा भी हो सकता है । मैं अपनी माँ को बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ और रह गई बात पापा को समझने की तो उन्हें समझने के लिए मैं उनसे मिल ही नहीं सका अधिक बार ! नहीं साधना नहीं ! मेरा दिल कहता है इसमें कोई न कोई राज है । हालाँकि मैं जमना की बात को नकार नहीं रहा हूँ लेकिन वो बात भी मैं कैसे मान लूँ जिसके बारे में मैं पूरा आश्वस्त हूँ ! एक बार सूरज पश्चिम से उदय होने की खबर भले सही हो जाय लेकिन मेरी माँ मेरी जुदाई के गम से बीमार हो गई यह खबर सही नहीं हो सकती । कभी नहीं हो सकती । मैं जानबूझकर अपनी हँसती खेलती जिंदगी को किसी व्यर्थ के माया मोह के चक्कर में दाँव पर नहीं लगा सकता । नहीं साधना नहीं । मुझे माफ़ कर दो । यहाँ इस मोड़ पर मैं तुम्हारी बात भी नहीं मान सकता । मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ । कोई कहीं नहीं जा रहा । ” अब गोपाल खासा उत्तेजित नजर आ रहा था । सिर का दर्द अब उसके चेहरे पर हावी हो गया था ।
” यह ठीक नहीं गोपाल बाबू ! ऐसी हालत में जबकि डॉक्टरों ने बता दिया है कि माँ जी की बीमारी का इलाज अब आपके ही हाथ में है तो आपको अवश्य जाना चाहिए । अब इतने निष्ठुर भी ना हो जाइये कि आपको आपकी ही आत्मा कचोटने लगे । ” साधना ने गोपाल को समझाना चाहा । गोपाल उससे असहमति जताते हुए बोल पड़ा ,” तुम समझ नहीं रही हो ……! ” कि तभी साधना उसकी बात काटते हुए बोली ,” समझ आप नहीं रहे हैं गोपाल बाबू ! आप बात को समझने की कोशिश कीजिये । मुझे आप पर पूरा यकीन है । आप जो कह रहे हैं हो सकता है वह आपका अनुभव हो । हो सकता है कि इसमें कोई चाल भी हो जैसा कि आपने आशंका जताई है । लेकिन बावजूद इसके मैं यह नहीं चाहती कि कल कोई आये और मुझ पर यह इल्जाम लगाये कि एक माँ और बेटे के बीच एक बहू दीवार बनकर आ गई । कोई यह नहीं देखेगा कि वाकई परिस्थितियां क्या थीं ? यह फैसला किसका था ? ऐसा फैसला क्यों लेना पड़ा ? लेकिन एक सुर में सबको यह कहने का मौका अवश्य मिल जाएगा कि एक लड़की ने , एक बहू ने अपने रूप जाल में फँसा कर एक बेटे को उसकी माँ से जुदा कर दिया । और इसीलिये एक दिन मैं इनके साथ खुद ही उनके आशीर्वाद लेने अग्रवाल विला पर जाने वाली थी । लेकिन अब चूँकि उनकी सेहत ठीक नहीं है मेरा साथ जाना मुनासिब नहीं । उनकी सेहत पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़ जाए । मैं फिर कभी जाकर उनके चरणों में खुद को समर्पित कर दूँगी और उनसे माफ़ी माँग कर उनके आशीर्वाद ले लूँगी । आप अपने लिए न सही मेरी इज्जत की खातिर एक बार अवश्य माँ जी से मिल कर आ जाईये । आप एक बार उनको अपनी आँखों से भली चंगी देखकर आ जायेंगे तो कम से कम हम सबको तो संतोष हो जाएगा । बस आप उनको एक नजर देखकर ही तुरंत वापस आ जाना ! ”
गोपाल की आँखें सुर्ख लाल हो चुकी थीं । दर्द की अधिकता से उसका सिर फटा जा रहा था फिर भी अपने दर्द पर काबू रखने का प्रयास करते हुए वह धीमे से मुस्कुराया और बोला ,” तुम धन्य हो साधना ! जिस औरत ने तुम्हें अपने घर की सीढ़ियों से बाहर भगा दिया आज तुम्हें उसी औरत के सेहत की चिंता अपने भविष्य की कीमत पर भी है । मैं बहुत खुशनसीब हूँ कि मुझे तुम जैसी जीवन संगिनी मिली है । आज तक तो मैं तुम्हें अपनी जान से भी बढ़कर प्यार करता था लेकिन अब मुझे तुम्हारी पूजा करने का मन हो रहा है । सच ! तुमने एक मिसाल पेश की है और समाज का दोगलापन देखो , हर रिश्ते में दरार के पीछे औरत को ही जिम्मेदार मान लेते हैं । जबकि औरत तो त्याग और बलिदान की मूर्ति होती है । ” तभी साधना की नजर गोपाल की सुर्ख आँखों पर पड़ी । गोपाल के माथे को छूते हुए बोली ,” अरे ! आपको तो बहुत तेज बुखार है । ” गोपाल के हाथ में बंधी घडी देखते हुए बोली ” चार बजनेवाले हैं । डॉक्टर साहब के आने का समय हो गया है । चलिए ! चलें ! ”

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।