कहानी

लौट आओ अब

सुनो,….आज हमारे विवाह को 23 वर्ष पूरे होने आए ।इन तेईस वर्षों में हमने जाने कितने दुख सुख एक साथ देखे हैं ।बहुत से उतार- चढ़ाव जीवन मे सहे हैं । एक लंबा सफर एक साथ मिल कर तय किया ।
आज अकेली बैठी कल की ही बात सोच रही हूं ।कल शाम तुम रोज की तरह देर से आये खुद ही नाराज हो गए  ।और जोर से बोले” आखिर तुम चाहती क्या हो”?  बार बार कल से यही प्रश्न मन मे कौंध रहा है ‘क्या चाहती हूं मैं….?’   बच्चे पढ़ लिख गए दोनों अपने अपने जीवन मे आगे बढ़ गए । मैंने अपनी ससुराल की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया  हर मोड़ पर आपका ही तो साथ दिया हर कदम पर अपना आँचल तुमहारे पैरों तले बिछाया ।
इतना साथ संग गुजरने पर भी तुम नहीं समझ पाए ? “मैं तुमसे चाहती क्या  हूँ”….?  कमर झुकने ही लगी अब दर्द घुटनों में जड़ें जमाने लगा है ऐसे समय मे जीवन साथी दोस्त बन जातें हैं जो हर छोटी छोटी बात ध्यान से सुनें समझें । पर “क्या मिनी तुम भी “….?
तुम्हे मेरी बातें बोझ सी लगती हैं अब …।
दिल ठहर सा गया है अब इस उम्र में क्या ,क्यों,नहीं चाहिए ।
क्या उम्र के साथ भावनाएं ,बचपना,इच्छाएं भी खत्म हो जानी चाहिए …?’
तुम कुछ सुनना समझना ही नहीं चाहते ।
बहुत दुख होता है मुझे खुद को यूँ तन्हा ,अकेला खड़ा देखकर …’
कितने मधुर थे वो पल जब नाश्ता एक साथ करते ,बच्चों के सोने  की राह देखते संग संग बैठकर जाने कितनी देर तक बात करते रहते इधर उधर की देखते रहते एक दूसरे को घण्टों ।
चाय तुम आज भी वैसे ही पीते हो पर अखबार के साथ । बात आज भी यूँ ही करते हो पर फोन पर बिजनेस की । तुम बहुत बदल गए हो सुधीर । कभी तुम मेरी माथे की लट पर शायरी किया करते थे । मेरे पहने हुए किसी अच्छे से सूट साड़ी पर तारीफ में ना जाने कितने शेर पढ़ देते ।
आज मैं सज संवर कर तुम्हे लाख दिखाउँ तुम नजर तक नहीं डालते। प्रशंसा के तो शब्द भी नहीं अब तुम्हारे पास …..?’ नहीं समझना चाहते ” आखिर मेरा मन क्या चाहता है…?’
जानती हूं उम्र के हर मुकाम पर स्त्री जैसे जैसे नए नए रिश्ते,जिम्मेदारियां ओढ़ती है वैसे ही पुरुष भी गम्भीर ,अनुभवी हो जाते हैं ।जीवन की समस्याओं में उलझ कर प्रेम कुछ समय के लिए बंट जाता है बिखर जाता है ।पर क्या प्रेम को दोबारा पाया नहीं जा सकता । वही दोस्त क्या जीवन मे फिरसे वापस नहीं आ सकता ।  अब जब उत्तरदायित्व कुछ कम हुए हैं तो फिर से वक्त मिला है । उसी तरह एक दूजे के लिए जीने का बहुत मन होता है पुराने दिन फिर से लौट आये तो तुम क्यों नहीं अपनी उसी पुरानी मिनी के पास लौट आओ …
क्या मेरी मांग कुछ ज्यादा है या गलत है तुम ही कहो ना सुधीर ……बोलो ना …
तुम्हारी प्रिय …..
रीना गोयल ( हरियाणा)

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर