गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो मक़तल में कैसी फ़ज़ा माँगते हैं ।।
जो क़ातिल से उसकी अदा माँगते हैं ।।

जुनूने शलभ की हिमाकत तो देखो ।
चरागों से अपनी क़ज़ा माँगते हैं।।

उन्हें भी मिला रब सुना कुफ्र में है ।
जो अक्सर खुदा से जफ़ा माँगते हैं ।।

असर हो रहा क्या जमाने का उन पर ।
वो क्यूँ बारहा आईना माँगते हैं ।।

अजब कश्मकश है मैं किससे कहूँ अब ।
यहां बेवफ़ा ही वफ़ा माँगते हैं ।।

जिन्हें पीना आया है नजरों से साकी ।
वही होश आते नशा माँगते हैं ।।

उन्हीं को मिली है सजाएं यहां पर ।
मेरे हक़ में जो फैसला माँगते हैं ।।

शज़र सूखते जब कहीं तिश्नगी से।
तो बादल से काली घटा माँगते हैं ।।

मैं दिल कैसे दूँ खेलने के लिए अब ।
जरा सोचिए आप क्या माँगते हैं ।।

करो कुछ तो उनपे भी नज़रे इनायत ।
तुम्हारे लिए जो दुआ माँगते हैं ।।

यकीनन वही लोग होंगे सितमगर।
जो रिश्ता यहाँ जिस्म का माँगते हैं ।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

*नवीन मणि त्रिपाठी

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