गीत/नवगीत

सुगत सवैया – तृष्णा

मन रूपी घट  बसे साँवरे,फिर भी तृष्णा रही अधूरी ।
जैसे वन वन ढूँढ़ रहा मृग ,छिपी हुई मन में कस्तूरी ।
लोभ ,मोह अरु मद माया में ,मृग तृष्णा सा मन भटका है ।
जनम मृत्यु अरु पाप पुण्य के ,उलट फेर में ही अटका है ।
तज सब बंध दरश कब दोगे ,कब हो यह अभिलाषा पूरी ।
मन रूपी घट  बसे साँवरे,फिर भी तृष्णा रही अधूरी ।
कर्म जाल में नित उलझा मन ,भव से निकल कहो कब पाया ।
मैं नर हूँ  प्रभु तुम नारायण ,सभी तुम्हारी माया काया ।
मैं मजबूर विधी के हाथों ,किंतु आपकी क्या मजबूरी ।
मन रूपी घट  बसे साँवरे,फिर भी तृष्णा रही अधूरी ।
रीना गोयल ( हरियाणा)

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर