मुक्तक/दोहा

रोला छंद

रोला छन्द
तीन मुक्तक

(1)
जीवन के पल चार ,सदा खुश होकर जी लो
अधरों की मुसकान ,बाँट कर खुशियाँ घोलो |
मिटे कुहासा द्वन्द,करें कुछ ऐसा आओ
बढे परस्पर प्रेम ,जहाँ को स्वर्ग बनाओ |

(2)
मिला तुम्हारा साथ ,हुआ अनुरागी यह मन
सजा मेरा संसार ,प्रीत रंग भीगा तन मन |
खिले कुसुम बहुरंग,छटा मधु ऋतु की छाई
नवल प्रेम अनुराग , बजे मन में शहनाई |

(3)
इतराये मन खूब ,देख बिटिया की रुन झुन
अँगना गूँजे खूब ,बोल बिटिया के सुन सुन
हुआ पूर्ण संसार ,तुझे जिस पल था पाया
था वह कोई पून्य तभी जीवम हरषाया |
मंजूषा श्रीवस्तव

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016