रोला छंद
रोला छन्द
तीन मुक्तक
(1)
जीवन के पल चार ,सदा खुश होकर जी लो
अधरों की मुसकान ,बाँट कर खुशियाँ घोलो |
मिटे कुहासा द्वन्द,करें कुछ ऐसा आओ
बढे परस्पर प्रेम ,जहाँ को स्वर्ग बनाओ |
(2)
मिला तुम्हारा साथ ,हुआ अनुरागी यह मन
सजा मेरा संसार ,प्रीत रंग भीगा तन मन |
खिले कुसुम बहुरंग,छटा मधु ऋतु की छाई
नवल प्रेम अनुराग , बजे मन में शहनाई |
(3)
इतराये मन खूब ,देख बिटिया की रुन झुन
अँगना गूँजे खूब ,बोल बिटिया के सुन सुन
हुआ पूर्ण संसार ,तुझे जिस पल था पाया
था वह कोई पून्य तभी जीवम हरषाया |
मंजूषा श्रीवस्तव