लघुकथा

कलुषित मन

“वह कुलटा नारी सम्पूर्ण ग्राम का माहौल खराब कर रही थी। ग्राम का कोई भी परिवार उस कुलटा नारी को पसन्द नहीं करता था। ग्राम की बड़ी-बूढ़ी औरते उसे कुलच्छनी कहती थीं। उस कुलटा नारी का एक ही पुत्र था लेकिन उसका विवाह भी उस कुलटा नारी के लक्षणों के कारण नहीं हो पा रहा था.” प्रवचनकार भागवत कथा में किसी प्रसंग में रस घोलने के लिए अपनी लय में बहे चले जा रहे थे और कुलटा स्त्री शब्द का बार-बार जिक्र कर रहे थे।
उधर पाण्डाल में बैठा पुरूष वर्ग प्रसंग सुनकर आनन्दित हो रहा था तो दूसरी ओर नारी वर्ग में कुछ खुसर-पुसर शुरू हो गई थी।इसी बीच व्यास पीठ पर विराजित प्रवचनकार के पास आकर उनके अनुसरणकर्ता ने कुछ कहा और उसकी बात सुनकर वे आगबबूला हो गए। उन्होंने अपना प्रवचन बन्द कर दिया और आयोजकों को बुलाकर कुछ बातें करने लगे। उनकी चिन्ता कल ही कथा के समापन को लेकर थी।
कुछ देर बाद प्रवचन पुनः प्रारम्भ हो गया। शर्माजी अग्रिम पंक्ति में ही बैठे थे। शर्माजी ने अपने पास बैठे मित्र के कान में फूसफूसाकर कहा- “देखो सतीश बाबू, प्रवचन की फीस को लेकर विवाद था।आयोजकों के पास कलेक्शन पूरा नहीं हो सका था फिर भी उन्होंने हाथ-पैर जोड़कर किसी तरह मामले को निपटा लिया। लगता है कि सन्तश्री के मन में जो कलुष आ गया था, वह मिट गया है। अब वे कुलटा का चरित्र चित्रण बखूबी कर सकेंगे!

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009