गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

समांत- आम, पदांत- को, मापनी- 2122 2122 1222 12

“गीतिका”

डोलती है यह पवन हर घड़ी बस नाम को
नींद आती है सखे दोपहर में आम को
तास के पत्ते कभी थे पुराने हाथ में
आज नौसिखिए सभी पूजते श्री राम को।।

राहतों के दौर में चाहतें बदनाम कर
लग गए सारे खिलाड़ी जुगाड़ी काम को।।

किश्त दर किश्त ले आ रहें बन सारथी
बैंक चिंतित हो रहा बाद बाकी दाम को।।

पर्व है यह वोट का कह रहे नेता सभी
दान की अवमानना मत सिखा आवाम को।।

खोखली तो मत करो नीति की सुंदर विधा
लोक औ परलोक सारे तंत्र होते धाम को।।

नीति है तो राज हैं मत चलाओ लाठियाँ
प्यार गौतम से करो औ खिला लो शाम को।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ