कहानी

घाट-84, रिश्तों का “पोस्टमार्टम”

आज फ्रेशर पार्टी के कारण युनिवर्सिटी में खूब चहल-पहल थी ..हाल नये पुराने चेहरों से खचाखच भरा था। स्टेज पर परफार्मेंस चल रहे थे,… तभी उदघोषणा हुई “आज एक न्यू स्टुडेंट भावना जी डांस परफार्म करने जा रही हैं…प्लीज शांति बनाए रखें”।
भावना जिसे आज युनिवर्सिटी पहुंचने में देर हो गई थी उदघोषणा सुनते ही बैक स्टेज की तरफ भागी तभी अचानक किसी से जोर से टकराई पर हड़बड़ी में उसने ये भी नहीं देखा कि टकराने वाला कौन है जिसकी निगाहें उसके ओझल होने तक उसका पीछा करतीं रहीं।

वो जब स्टेज पर पहुंची हाल में सन्नाटा छा गया…. अरे ये सचमुच की परी कहां से उतर आयी कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है..? सबके चेहरे पर यही लिखा था। और जब भावना का डांस खत्म हुआ हाल में पेन ड्राप साइलेंस फैल गया… कि तभी कुलपति खड़े होकर ताली बजाने लगे और पूरा हाल तालियों के गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कुलपति के आंखों ने एक अजीब चमक दिख रही।उसके सौन्दर्य और डांस का जादू पूरे युनिवर्सिटी पर छा चुका था।

अगले दिन कैंपस में कुछ आवारा किस्म के लड़कों ने भावना को घेर लिया, तभी वहां से गुजर रहे एक लड़के की नजर उनपर पड़ी। वह उनके पास गया और भावना को उनके घेरे से बाहर निकाल लाया और चलते चलते बोला “मैडम कल तो आपने मेरा मुंह ही तोड़ दिया था देखिए सूजन अब तक है”, ये सुनकर भावना उसे अचकचा कर देखने लगी, तभी आदित्य ने कहा “अरे मैडम कल जल्दी में आप मुझे तोड़ते- फोड़ते स्टेज पर पहुची थी।” यह सुनकर भावना झेंप गई और कुछ कहने ही वाली थी कि तभी उस लड़के ने टोक दिया . . कोई बात नहीं, अब इस हसीन बला को देखने के लिए लोग अपनी जान तक गवां सकते हैं मैं तो केवल टूट – फूट कर ही रह गया। इसी तरह बात करते-करते वो क्लास तक पहुंच गए। लड़के ने कहा वाइदवे मुझे आदित्य कहते हैं और मैं थर्ड ईयर में हूँ।

पता नहीं भावना को आदित्य का साथ कुछ अलग सा महसूस हुआ और न चाहते हुए भी वह उसके बारे में सोचने लगी।
इसी तरह दोनों में नजदिकियां बढ़ती गई और एक समय ऐसा आया कि भावना आदित्य के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी।
भावना को डांस का बहुत शौक था वह अक्सर एडोटेरियम में डांस की प्रैक्टिस करती रहती थी जिसके सामने ही आफिसेस बने हुए थे… कुलपति के आफिस से स्टेज साफ दिखाई देता था …वो देख रहा था भावना और आदित्य की दिनोंदिन बढ़ती नजदीकियों को और उसी के साथ उसकी आंखों की चमक भी बढ़ती जा रही थी।..
अब ये आदित्य कौन है भाई… मैं अभी सोच ही रह था कि कॉलबेल बजी। धत्त तेरे की, कौन आ गया ? यार सौरभ तू शांति से एक डायरी भी नही पढ़ सकता।” कहते हुए मैंने दरवाजा खोला। सामने एक अट्रैक्टिव सी लड़की खड़ी थी जिसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं थी। मैंने पूछा कौन हो तुम ?
“चिकनी चमेली, तुम सौरभ हो ना जल्दी चलो देखो पंडित को क्या हो गया है ?”
और फिर क्या था मैं आनन – फानन में बस दरवाजा बंद किया और लगा दी रेस। वो इतनी धीमे चल रही थी कि मन कर रहा था उसका बाल पकड़ के पूछूँ कि आखिर हुआ क्या, जल्दी चल। पर उसने कुछ पूछने का मौका ही नहीं दिया। कुछ दूर पर मुझे निशा के दोस्त दिखाई दिए अब मैं चिकनी चमेली को पीछे छोड़ते हुए उनके पास पहुँचा और हाँफते हुए पूछा कि क्या हुआ निशा को ?
मेरी हालत देखकर अचानक ही सभी खिलखिलाकर हँस पड़े। और मैं बेवकूफों की तरह उन्हें देख रहा था। तभी शक्ति शिकारी बोला “देखो मैंने कहा था न कि वो जिस भी हाल में होगा दौड़ के आएगा।” तभी मेरी नजर अपने ऊपर पड़ी मैं बनियान और हाफ पैंट में ही दौड़ पड़ा था। अब मैं उन्हें क्या बताता कि निशा का नाम आने पर मुझे और कुछ नही दिखता कुछ भी नहीं।
“हाँ तो भाई सौरभ! तुम तो बीमार थे यहाँ तक कि मोबाइल भी बंद कर रखा था। केवल एक नाम की दवा ने तुम्हें रेसर बना दिया, वाह!!” एक आँख दबाते हुए तुलसी टपोरी बोला। “सर्दी खाॅसी न मलेरिया हुआ स्वाती…सर्दी खाॅसी न मलेरिया हुआ, ये गया यारों इसको” स्वाती और बाकी से सब एक साथ बोले “लव लव लव लवेरिया हुआ लवेरिया हुआ लवेरिया हुआ”
मैं बुरी तरह झेंप गया, ले बेटा सौरभ ये सब मिलकर तेरी बत्ती लगाने वाले हैं। अब सोच अगर ये बात निशा को पता चली तो क्या होगा ? तुलसी की बात सुनकर सब हँसे जा रहे थे, मैंने कहा “अंकल- आँटी बाहर गए है कभी भी आ सकते हैं, दरवाजा बाहर से बंद है मुझे चलना चाहिए” कहते हुए मैं लौट पड़ा। पीछे वो चिल्लाते रहे “ओए हिदुस्तानी रोमियो रुक जाओ यारा,अब गुस्सा थूक भी दो…” पर मैं रुका नहीं। ये देखकर मुझे राहत मिली कि अभी अंकल आँटी का कुछ पता नहीं था। मैंने फिर से डायरी पढ़ना शुरू किया……
……….आदित्य एक अति महात्वाकांक्षी छात्रनेता था, जरूरत से ज्यादा महात्वाकांक्षी। उसे इस साल छात्र संघ चुनाव जीतना था। उसने कई बार भावना से इसका जिक्र किया था। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा था आदित्य की व्यस्तता बढ़ती जा रही थी यहाँ तक की पूरे पूरे दिन भावना से उसकी बात तक नहीं हो पाती थी। आदित्य ने बताया कि पूरी यूनिवर्सिटी कुलपति के हाथ में ह,ै वो जिसे चाहे जीता सकता है। किसी भी तरह अगर कुलपति अपने साइड में हो गया तो मुझे चुनाव जीतने से कोई नहीं रोक सकता। भावना को भी लग रहा था चुनाव जीतने के बाद उनके बीच आईं दूरियां मिट जाएंगी।
एक दिन भावना ने देखा आदित्य अकेले बैठा था उसके चेहरे पर उदासी और गुस्सा दोनों था। इससे पहले भावना ने आदित्य को इस तरह परेशान कभी नहीं देखा था। उसने परेशानी का कारण पूछा और फिर क्या था आदित्य फट पड़ा– “इतना कमीना इंसान, मैंने कभी नहीं देखा। भावना ये कुलपति इतना गिरा हुआ होगा मैंने कभी सोचा भी नहीं था।”
..क्या हुआ कुछ बोलोगे भी।
“मैं ये चुनाव कभी नहीं जीत सकता भावना कभी नहीं।” आदित्य के आँखों में टूटे सपने तैर रहे थे जिसे देखकर भावना का मन कटकर रह गया।
“कुछ बताओ तो आदि, हुआ क्या ?? और आदि ने जो कुछ बताया उसे सुनकर उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई………क्रमशः
(कविता सिंह-सौरभ दीक्षित “मानस”)

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) dixit19785@gmail.com जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,