गीतिका/ग़ज़ल

माना वक़्त बुरा है तो मर जाएँ क्या

माना वक़्त बुरा है तो मर जाएँ क्या
अपनी ही निगाहों से उतर जाएँ क्या

हर चीज़ मेरे मुताबिक हो,जरूरी तो नहीं
इतने से ग़म में जाँ से गुज़र जाएँ क्या

मैंने जीने का वायदा किया है किसी से
मौत को देख वायदे से मुकर जाएँ क्या

फूल की तरह खिलने का माद्दा है मुझमें
बेकार ही तूफाँ में पत्तियों सा बिखर जाएँ क्या

अभी तो पाँव जमाए हैं मेरी हसरतों ने
कोई कुछ कहे तो जड़ से उखड़ जाएँ क्या

सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com