कविता

हम कहाँ जा रहे हैं

बड़ी अजीब सी होती जा रही है
शहरों की रौशनी
उजालों के बावजूद
चेहरे पहचानना
मुश्किल होता जा रहा है
नादान होता जा रहा है
आज का इंसान
अटकता है
जब दुःख आता है
भटकता है
जब सुख आता है
न जाने किस पथ पर
चल पड़ा है
इसी को ही
अग्निपथ समझ बैठा है
पर वह भूल जाता है
समय की मार को
क्योंकि
समय जब फैसला सुनाता है तो
गवाहों की ज़रुरत नहीं होती

सुदर्शन खन्ना

वर्ष 1956 के जून माह में इन्दौर; मध्य प्रदेश में मेरा जन्म हुआ । पाकिस्तान से विस्थापित मेरे स्वर्गवासी पिता श्री कृष्ण कुमार जी खन्ना सरकारी सेवा में कार्यरत थे । मेरी माँ श्रीमती राज रानी खन्ना आज लगभग 82 वर्ष की हैं । मेरे जन्म के बाद पिताजी ने सेवा निवृत्ति लेकर अपने अनुभव पर आधरित निर्णय लेकर ‘मुद्र कला मन्दिर’ संस्थान की स्थापना की जहाँ विद्यार्थियों को हिन्दी-अंग्रेज़ी में टंकण व शाॅर्टहॅण्ड की कला सिखाई जाने लगी । 1962 में दिल्ली स्थानांतरित होने पर मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा पिताजी के साथ कार्य में जुड़ गया । कार्य की प्रकृति के कारण अनगिनत विद्वतजनों के सान्निध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला । पिताजी ने कार्य में पारंगत होने के लिए कड़ाई से सिखाया जिसके लिए मैं आज भी नत-मस्तक हूँ । विद्वानों की पिताजी के साथ चर्चा होने से वैसी ही विचारधारा बनी । नवभारत टाइम्स में अनेक प्रबुद्धजनों के ब्लाॅग्स पढ़ता हूँ जिनसे प्रेरित होकर मैंने भी ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक ब्लाॅग आरंभ कर कुछ लिखने का विचार बनाया है । आशा करता हूँ मेरे सीमित शैक्षिक ज्ञान से अभिप्रेरित रचनाएँ 'जय विजय 'के सम्माननीय लेखकों व पाठकों को पसन्द आयेंगी । Mobile No.9811332632 (Delhi) Email: mudrakala@gmail.com

One thought on “हम कहाँ जा रहे हैं

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, सबसे पहले तो बहुत ही सुंदर कविता के लिए बधाई. यह कविता क्या है, गागर में सागर है. हम कहाँ जा रहे हैं, एक ऐसा यक्ष प्रश्न, जो आजकल हर एक अपने से पूछ रहा है, लेकिन जताता नहीं. इसका कारण भी तो हम खुद ही हैं. समय की मार को समझते हुए भी हमने ही नादानी का नकाब ओढ़ रखा है. बहुत सुंदर संदेशप्रद रचना के लिए आभार.

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