कविता

ऐसा है मेहबूब मेरा

मासूम चेहरा
मस्त अदाएं
एक बार देखे
तो जी भर जाये
ऐसा है मेहबूब मेरा

होठ गुलाबी
नयन शरबती
गाल रसीले
आँख मस्तानी
ऐसा है मेहबूब मेरा

बाते उसकी
बहुत निराली
करती है
अपनी मन मानी
चेहरा उसका है नूरानी
ऐसा है मेहबूब मेरा

जब वो मेरा
नाम लेती है
धड़कन मेरी
वो बढाती है
कुछ बोलो तो
चुप रह जाती है
ऐसा है मेहबूब मेरा

ना मिलो तो
रोना आता
मिल कर दिल खुश
हो जाता
उस के पास रहने से
धरती गगन एक हो जाता
ऐसा है मेहबूब मेरा

उस को पा कर
खुशिया पाई है
बिछड़ कर
सांसे टूट जानी है
मोह्हबत के इस
युद्ध में
हार कर
जीत जानी है
ऐसा है मेहबूब मेरा

रवि प्रभात

पुणे में एक आईटी कम्पनी में तकनीकी प्रमुख. Visit my site