लघुकथा

होजमालो

आजकल चारों ओर नवरात्रों के कीर्तन की धूम मची हुई है. सिंधी समुदाय नवरात्रों के कीर्तन की धूम के साथ-साथ चेती-चांद के कीर्तन की धूम का भी आनंद ले रहा है. सिंधी समुदाय का कोई भी कीर्तन या सिंधी संगीत हो, एक लोकगीत ”मुँहिंजो खट्टी आयो ख़ैर सां- होजमालो” के बिना संपूर्ण नहीं होता. इस गीत में कुछ ऐसी कशिश है, कि इस गीत के शुरु होते ही मन में मस्ती की लहर दौड़ जाती है. हर सिंधी जहां जगह मिले झूमने-नाचने लगता है. अभी-अभी यह गीत सुना. गीत सुनते ही मुझे इसके पीछे छिपा 230 साल पुराना इतिहास याद आ गया.

सन 1889 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल के दौरान पूरे देश में रेलवे लाइन डाली गई थी. जिसके तहत अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के सखर शहर के बीच से बहती सिंधु नदी के ऊपर एक रेलवे ब्रिज बनाया गया.

जब ब्रिज बनकर तैयार हुआ तो उस काल में रेलवे के किसी भी ड्राइवर ने यह हिम्मत नहीं हुई कि उस ब्रिज के ऊपर टेस्ट करने के लिए रेल गाड़ी लेकर चला जाए, क्योंकि उस ब्रिज के नीचे तेज गति से बहती सिंधु नदी का बहाव इतना तेज था कि किसी भी दुर्घटना होने पर निश्चित तौर से उस ड्राइवर की मौत का कारण बन जाए.

ब्रिटिश सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी सिरदर्दी बन गया था. अपार धनराशि से बने इस पुल को व्यर्थ जाने देना भी उसके लिए मुश्किल था. तभी ब्रिटिश सरकार को एक फांसी की सजा पाए एक कैदी का एक पत्र मिला-

”मैं बतौर ड्राइवर रेल गाड़ी चला कर उस ब्रिज की टेस्टिंग के लिए अपनी जान का जोखिम लेने के लिए तैयार हूं. मेरी शर्त है कि यदि मैं रेलगाड़ी ब्रिज के पार लगा देता हूँ तो आप मेरी सजा माफ करेंगे और मुझे जेल से आजाद कर देंगे.”
जमालो

ब्रिटिश सरकार को और क्या चाहिए था! सरकार ने राजी होकर दो महीने का प्रशिक्षण देकर जमालो को रेल गाड़ी चलाना सिखाया. टेस्टिंग वाले दिन जमालो बुजुर्गों के पैर छूकर उस रेल गाड़ी पर ड्राइवर बनकर सवार हो गया.

यह दृश्य देखने के लिए सिंध प्रांत में बसे सैकड़ों लोग जमा हो गए और जमालो की ज़िंदगी के लिए दुआ मांगने लगे. रेलगाड़ी ने चलना शुरू किया तो लोगों की सांसें थम गईं. जमालो ने ईश्वर का नाम लेकर लिवर खींचा और धीरे-धीरे रेलगाड़ी आगे बढ़ी. एक बार तो लोगों को लगा कि अब जमालो नहीं बचेगा, लेकिन रेलगाड़ी ब्रिज पार कर गई.

जैसे ही जमालो रेलगाड़ी सहित सकुशल ब्रिज के पार लेकर पहुंचा तो वहां मौजूद सारे लोग मारे खुशी के नाचने लगे. ब्रिज के पार खड़ी अपने पति की जान की दुआ मांगती जमालो की बीवी के मुंह से मारे खुशी के अनायास यही शब्द निकले-
”मुँहिंजो खट्टी आयो ख़ैर सां- होजमालो”.

जिसका शाब्दिक अर्थ है – मेरा जीत के आया खैर से – होजमालो, यानी कि मेरा पति सकुशल मृत्यु से जीत कर जिंदगी के इस पार आ गया है. वहां मौजूद सैकड़ों लोग होजमालो के नारे लगाने लगे.

तब से यह लोक गीत सिन्धी सम्प्रदाय की संस्कृति में प्रविष्ट गया. तब से सिन्धी समुदाय के लोग खास तौर से इस लोक गीत को जब-जब भी कहीं विजयश्री प्राप्त होती है. तब-तब यह गीत बतौर शुभ शगुन मान कर गाते हैं और साथ-साथ नाचते भी हैं.

उस समय की प्रथा के अनुसार जमालो की बीवी उसका नाम नहीं ले सकती थी, इसलिए खुशी में उसने जमालो के पहले प्रसन्नता वाचक शब्द ‘हो’ लगा दिया. यह लोकगीत सिन्धी समुदाय की हिम्मत और जोखिम उठाने की क़ुब्बत का आईना है.

क़ुब्बत का अर्थ- शक्ति; बल; ताकत; सामर्थ्य; कूवत.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “होजमालो

  • लीला तिवानी

    होजमालो लोकगीत पंजाबी के लोकगीत टप्पों की तरह है. बहुत मधुर गीत पर गाने से नाचने वालों में बहुत जोश आ जाए, तो गाने वाले नए-नए टप्पे जोड़कर मस्ती की उस लहर को बनाए रखते हैं. कभी-कभी यह गीत लगातार आधा घंटा भी चल जाता है. मैंने भी इस धुन पर अनेक गीत लिखे हैं. मेरी नई किताब सिंधी गीत-कविता-भजन संग्रह का नाम है ‘गुलु त गुलाब जो’. इस संग्रह का यह आखिरी विवाह-गीत मुँहिंजो गुलु त गुलाब जो इसी धुन पर लिखा गया है.

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