हास्य व्यंग्य

अंडरएस्टिमेट करते रहिए और होते रहिए

अंडरएस्टिमेट शब्द यूं तो अंग्रेजी का शब्द है, लेकिन हमारे भारत में प्रायः सभी प्रदेशों की भाषाओं के साथ ऐसा घुलमिल गया है कि बहुत अपना सा हो गया है। हिंदी में अंडरएस्टिमेट का मतलब किसी व्यक्ति को कमतर आंकने से है। यह भी कह सकते हैं कि अंडरएस्टिमेट करना हम भारतीयों की एक प्रवृत्ति बन गई है। मुगलकाल के समय बना मुहावरा घर की मुर्गी दाल बराबर हमारे अंडरएस्टिमेट स्वभाव का जीवंत प्रमाण है। हमारे यहां अंडरएस्टिमेट करने की प्रक्रिया बचपन से ही शुरु हो जाती है, जब छोटे छोटे बच्चों के भोलेपन को नासमझ समझा जाने लगता है। इससे एक बात अंडरएस्टिमेट क्रिया में सामने आती है कि जो भोले होंगे, उनको अंडरएस्टिमेट किया जाना तय है। अब जो भोले हैं, वे थोड़े नासमझ होंगे ही, उनमें अनुभव की कमी होना भी लाज़मी है। यानि उनका अंडरएस्टिमेट किया जाना बनता है।

अंडरएस्टिमेट होने वाला व्यक्ति कुछ बोल नहीं पाता, परंतु अंडरएस्टिमेट करने वाले व्यक्ति को स्वयं को तीसमारखा समझना ही पड़ेगा, साबित करना या हो पाना उतना मायने नहीं रखता है। आपके अंदर यदि सामने वाले को अंडरएस्टिमेट करने की दबंगता विद्यमान है, तो आप काफी मंजे हुए वक्ता और धुरंधर प्रकृति वाले व्यक्ति हो सकते हैं। अंडरएस्टिमेट होने वाले व्यक्ति के पास दिखाने और बोलने के लिए मजबूत तथ्य नहीं होते, इसलिए उसे इस जबर्दस्त प्रक्रिया के दबाब से गुजरना ही पड़ता है। अंडरएस्टिमेट करने वाला व्यक्ति स्वयं की संतुष्टि अथवा स्वातःसुखाय हेतु क्षणिक कभी कभी दीर्घ आनंदानुभूति से प्रफुल्लित हो लेता है।

अंडरएस्टिमेट करने के समय भी ऋतु अनुसार आते हैं। यूं तो यह प्रक्रिया काल, परिस्थितियों और विषयों के अनुसार निरंतर चलती रहने वाली होती है। परंतु लोकतंत्रीय धर्मनिरपेक्ष देश में चुनावी समयों के पूर्व अंडरएस्टिमेट करने की प्रक्रिया अधिक बढ़ जाती है। अक्सर बच्चों के परीक्षा परिणाम आने के बाद भी अंडरएस्टिमेट होने और करने में बढ़ोत्तरी देखने मिलती है। दफ्तरों में पदोन्नति के समय भी कई बार अंडरएस्टिमेशन बड़ा बाधक साबित होता है। परिवारों में अक्सर महिलाएं (वे किसी भी रिश्ते की हों), छोटे भाई-बहन और नौकर-चाकर प्रायः अंडरएस्टिमेशन के शिकार होते पाए जाते हैं। व्यावसायिक ऊंचनीच माहौल में अंडरएस्टिमेशन लाभ-हानि के अनुसार तय किए जाते हैं। इस तरह अंडरएस्टिमेशन विषयानुसार परिवर्तित होने वाला कारक है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अंडरएस्टिमेट करना और होना दोनों को ही मनोविज्ञान के अन्तर्गत अधिक विश्लेषित किया जाता है। हांलाकि अंडरएस्टिमेट प्रक्रिया के समय जीववैज्ञानिकतौर पर अवश्य ही कुछ नए हारमोन स्त्रावित होते होंगे, क्योंकि संवेदनाएं प्रभावित होती हैं। यह उन वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय हो सकता है, जो नए विषयों पर शोध के लिए अंरएस्टिमेट न किए जा रहे हों। शेष दुनिया के लिए कुछ कह पाना दूसरे देशों को अंडरएस्टिमेट करना होगा, लेकिन अपने देश में रच बस गए स्वभाव के तौर पर अधिकार के साथ अंडरएस्टिमेट करते हुए यह कह सकते हैं कि इस समय देश में अंडरएस्टिमेशन प्रक्रिया जोरों पर है। इस जोर जबर्दस्ती की अंडरएस्टिमेट करने का खामियाजा भुगतने की आम भारतीयों को आदत हो गई है।  राजनीति ने सम्भवतः लोकतंत्रीय कसौटी पर आमजनता को भोला समझते हुए हमेशा अंडरएस्टिमेट किया और उसका सबसे बड़ा नुकसान स्वयं राष्ट्र की वैश्विक छवि को उठाना पड़ता रहा है। देश स्तर पर अंडरएस्टिमेशन प्रक्रिया के लिए राजनीतिक दल विशेष के परिवर्तन का कोई बहुत अधिक अंतर देखने में नहीं आता है, बल्कि वे किसी उत्प्रेरक की ही भांति काम करते हुए क्रिया के बाद अपने विशुद्ध रुप में साफ सुथरे बल्कि और उज्जवल से निकल आते हैं। आगे किसी और अन्य अंडरएस्टिमेशन क्रिया के लिए सज्ज के तौर पर।

भारत को विश्व में काफी अंडरएस्टिमेट होने की वेदना से गुजरना पड़ता है। जो युवा अपने खुद के देश में अंडरएस्टिमेट होने के शिकार हो जाते हैं, वे देश छोड़कर बाहर भागने की कोशिश में लग जाते हैं। वहां भी अंडरएस्टिमेशन कोई उनका पीछा थोड़े छोड़ता है, पर तब उनकी स्थिति सांप के मुंह में आ गए छछूंदर की सी हो जाती है। हम भारतीयों के जीवन में अंडरएस्टिमेट करने और होने का बड़ा गहरा संबंध हो गया है। इससे उबरने के बारे में कोई सोचना ही नहीं चाहता, क्योंकि जिस दिन अंडरएस्टिमेशन सोचने का विषय बन जाएगा, उस दिन से राजनीति, शिक्षा, व्यवसाय, जनता, देश, पदोन्तियां, बच्चे, माता-पिता, तथाकथित छोटे-बड़े, लेखक, कलाकार, और भी जाने कौन कौन अपनी असली प्रतिभा दिखाने लग जाएंगे। ऐसा होगा तो जीवन का मनोरंजन कैसे होगा। जबकि इस समय देखा जाए तो सोशल मीडिया ने अंडरएस्टिमेट युक्त मनोरंजन को एक सशक्त मंच प्रदान किया है। तो फिलहाल अंडरएस्टिमेट करते रहिए या होते रहिए, समय की यहीं मांग भी है, पूर्ति तो होती ही रहती है।

डॉ. शुभ्रता मिश्रा

डॉ. शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं । उनकी पुस्तक "भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र" को राजभाषा विभाग के "राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012" से सम्मानित किया गया है । उनकी पुस्तक "धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर" देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है । इसके अलावा जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा प्रकाशक एवं संपादक राघवेन्द्र ठाकुर के संपादन में प्रकाशनाधीन महिला रचनाकारों की महत्वपूर्ण पुस्तक "भारत की प्रतिभाशाली कवयित्रियाँ" और काव्य संग्रह "प्रेम काव्य सागर" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताओं को शामिल किया गया है । मध्यप्रदेश हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली)द्वारा संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्राके साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी गौरव सम्मान प्रदान किया गया है। इसी वर्ष सुभांजलि प्रकाशन द्वारा डॉ. पुनीत बिसारिया एवम् विनोद पासी हंसकमल जी के संयुक्त संपादन में प्रकाशित पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न कलाम साहब को श्रद्धांजलिस्वरूप देश के 101 कवियों की कविताओं से सुसज्जित कविता संग्रह "कलाम को सलाम" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताएँ शामिल हैं । साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में डॉ. मिश्रा के हिन्दी लेख व कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं । डॉ शुभ्रता मिश्रा भारत के हिन्दीभाषी प्रदेश मध्यप्रदेश से हैं तथा प्रारम्भ से ही एक मेधावी शोधार्थी रहीं हैं । उन्होंने डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से वनस्पतिशास्त्र में स्नातक (B.Sc.) व स्नातकोत्तर (M.Sc.) उपाधियाँ विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की हैं । उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से वनस्पतिशास्त्र में डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की है तथा पोस्ट डॉक्टोरल अनुसंधान कार्य भी किया है । वे अनेक शोधवृत्तियों एवम् पुरस्कारों से सम्मानित हैं । उन्हें उनके शोधकार्य के लिए "मध्यप्रदेश युवा वैज्ञानिक पुरस्कार" भी मिल चुका है । डॉ. मिश्रा की अँग्रेजी भाषा में वनस्पतिशास्त्र व पर्यावरणविज्ञान से संबंधित 15 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।