कविता

कविता

हिज्र हो या विदाई की पीड़ा,
एक लडकी ने ही तो उठाया है जुदाई का बीड़ा।
बाबुल को गले लगा के, लेकर सबकी दुआएँ,
झोली भर सपने वो सजाती है,
मुस्कुराकर सबकी जीन्दगीयो में खुशियाँ वो ले आती है।
नम आंखों से कर देती है दिल की बात बयाँ,
जब आऊँ मिलने सबसे,
ऐ बाबुल मुझे मेरे बचपन से मिला देना।
खोए लम्हे बचपन के मुझे फिर्से याद दिला देना,
जब आये फिर विदाई मुझे गले से लगा लेना।
जब आए मेरी याद, मेरी गुडिया को तुम पास सुला लेना,
और फिर भी न हो मन ये शान्त
तो फ़ोन लगा लेना
हंस कर कहना गुडिया और पास बुला लेना
 बाबुल मैं हूँ तेरी गुडिया मुझे गले से लगा लेना।

श्रद्धा बेदी ढल

मैं एक साधारण महिला हूँ , मुझे लिखने का शौक हैै। मैैं विध्याल्या में पढ़ाती हूँ।