गीतिका/ग़ज़ल

गजल

सहज लिखुँगा , सरल लिखुँगा
भाव हृदय के , तरल लिखुँगा ।।

बड़े सघन हैं , पीड़ सुपथ के
किन्तु पन्नों पर , विरल लिखुँगा ।।

अधरों पे रखी , झूठी तारीफें
इनको नीति का , गरल लिखुँगा ।।

जब मीत , सखा , शत्रु , सब अपने
‘समर’ नहीं वह सरल , लिखुँगा ।।

पुछो पीछे पुँजी , क्या छोड़ी ??
मैं आँखों का , तरल लिखुँगा ।।

तासीर कलम की ना बदलेगी
शहद लिखुँ या , गरल लिखुँगा ।।

समर नाथ मिश्र

One thought on “गजल

  • विजय कुमार सिंघल

    गजल अच्छी है, पर काॅमा और विराम से पहले स्पेस नहीं दिया जाता, केवल बाद में दिया जाता है।

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